दहेज केस में FIR डायरेक्ट क्यों दर्ज नहीं होती, Why is FIR not registered directly in dowry case

दहेज केस में FIR डायरेक्ट क्यों दर्ज नहीं होती

Why is FIR not registered directly in dowry case?



दहेज से जुड़े मामलों (धारा 498A IPC) (BNS Section 85) में FIR सीधे दर्ज न होने के कारण और प्रक्रिया को समझने के लिए विस्तृत जानकारी: Why is FIR not registered directly in dowry case?


1. दहेज केस और धारा 498A IPC: BNS Section 85

भारतीय दंड संहिता की धारा 498A महिला को उसके पति या ससुराल वालों द्वारा मानसिक, शारीरिक, या भावनात्मक उत्पीड़न से बचाने के लिए बनाई गई है। इसमें दहेज से संबंधित उत्पीड़न भी शामिल है।

इस प्रावधान में सख्त दंडात्मक कार्रवाई का प्रावधान है, क्योंकि इसे गैर-जमानती (Non-bailable) और संज्ञेय अपराध (Cognizable Offense) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।


2. FIR डायरेक्ट क्यों नहीं दर्ज होती?

498A (BNS Section 85) के तहत FIR सीधे दर्ज न करने के पीछे कई कारण हैं:

(i) दुरुपयोग की संभावना:

  • सुप्रीम कोर्ट और कई उच्च न्यायालयों ने पाया कि कुछ मामलों में इस कानून का दुरुपयोग किया गया है।
  • झूठे आरोप लगाकर पति या ससुराल वालों को परेशान करने के लिए इसे हथियार के रूप में इस्तेमाल किया गया।
  • यह कानून "स्वतंत्र गिरफ्तारी" की अनुमति देता है, जिससे निर्दोष व्यक्तियों को भी बिना जांच के तुरंत गिरफ्तार कर लिया जाता था।

(ii) परिवारिक विवाद को सुलझाने का प्रयास:

  • दहेज के मामले अक्सर पारिवारिक विवादों से जुड़े होते हैं।
  • कोर्ट और पुलिस पहले सुलह या विवाद के समाधान का मौका देना चाहती हैं।
  • अगर विवाद सुलझ जाता है, तो FIR दर्ज करने की आवश्यकता नहीं होती।

(iii) सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस:

  • राजेश शर्मा बनाम राज्य (2017): सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि दहेज और घरेलू हिंसा के मामलों में तुरंत गिरफ्तारी या FIR दर्ज करने से पहले प्राथमिक जांच (Preliminary Inquiry) की जानी चाहिए।
  • महिला सेल या काउंसलिंग कमेटी को मामला सुलझाने की कोशिश करनी चाहिए।

(iv) न्याय की संतुलन:

  • दहेज के झूठे मामलों से निर्दोष व्यक्तियों को बचाने के लिए FIR दर्ज करने से पहले जांच जरूरी है।
  • इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि केवल सही मामलों में ही FIR दर्ज हो।

3. FIR दर्ज करने की प्रक्रिया:

(i) शिकायत दर्ज:

  • महिला पुलिस स्टेशन या थाने में शिकायत दर्ज की जाती है।
  • शिकायत महिला हेल्पलाइन या महिला आयोग के माध्यम से भी दर्ज कराई जा सकती है।

(ii) प्रारंभिक जांच (Preliminary Inquiry):

  • पुलिस शिकायत की प्रारंभिक जांच करती है।
  • दोनों पक्षों को सुनने का प्रयास किया जाता है।
  • यह जांच महिला सेल या परिवार परामर्श केंद्र (Family Counseling Centre) द्वारा की जा सकती है।

(iii) सुलह का प्रयास:

  • यदि संभव हो, तो दोनों पक्षों के बीच सुलह कराने की कोशिश की जाती है।
  • यदि सुलह नहीं होती, तो FIR दर्ज की जाती है।

(iv) FIR दर्ज:

  • यदि शिकायत सही पाई जाती है और सुलह संभव नहीं है, तो FIR दर्ज की जाती है।
  • इसके बाद पुलिस उचित कानूनी कार्रवाई शुरू करती है।

4. FIR दर्ज होने के बाद प्रक्रिया:

  1. गिरफ्तारी:

    • सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार, गिरफ्तारी से पहले वरिष्ठ अधिकारियों की अनुमति जरूरी होती है।
  2. चार्जशीट दाखिल करना:

    • जांच के बाद, पुलिस पर्याप्त सबूत होने पर चार्जशीट न्यायालय में दाखिल करती है।
  3. मुकदमे की प्रक्रिया:

    • न्यायालय में गवाहों और सबूतों के आधार पर मामला चलाया जाता है।

5. सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश:

  • "498A" मामलों में पुलिस को तुरंत कार्रवाई करने के बजाय, CWC (Crime Against Women Cell) के माध्यम से शिकायत की जांच करनी चाहिए।
  • फैमिली वेलफेयर कमेटी (Family Welfare Committee) द्वारा रिपोर्ट के बाद ही FIR दर्ज होनी चाहिए।

6. निष्कर्ष:

दहेज से जुड़े मामलों में FIR सीधे दर्ज न करने का मुख्य कारण इन मामलों का गंभीर दुरुपयोग और उनका व्यक्तिगत/पारिवारिक प्रकृति का होना है। पुलिस और न्यायपालिका पहले सुलह और प्रारंभिक जांच को प्राथमिकता देती है ताकि निर्दोष व्यक्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

अगर आपको इस विषय पर और जानकारी चाहिए या आपकी स्थिति से संबंधित सलाह चाहिए, तो पूछ सकते हैं।

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