पति के व्यवहार को ‘सही’ करने के लिए धारा 498ए के तहत झूठा मुकदमा क्रूरता है: बॉम्बे हाई कोर्ट

 

पति के व्यवहार को ‘सही’ करने के लिए धारा 498ए के तहत झूठा मुकदमा क्रूरता है: बॉम्बे हाई कोर्ट

पति के व्यवहार को ‘सही’ करने के लिए धारा 498ए के तहत झूठा मुकदमा क्रूरता है: बॉम्बे हाई कोर्ट



बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि यदि कोई पत्नी अपने पति या उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498ए के तहत झूठा मामला दर्ज करती है, तो इसे पति के साथ क्रूरता माना जाएगा। इस फैसले ने वैवाहिक संबंधों में झूठे आरोपों के दुरुपयोग पर एक महत्वपूर्ण कानूनी दृष्टिकोण पेश किया।


मामले का पृष्ठभूमि:

  1. मूल विवाद:
    इस मामले में पति ने फैमिली कोर्ट में तलाक की याचिका दायर की थी। उसने अपनी याचिका में दावा किया कि उसकी पत्नी ने धारा 498ए (क्रूरता के आरोप) के तहत झूठा मुकदमा दायर किया और यह उसके मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।

  2. पत्नी का पक्ष:
    पत्नी ने दावा किया कि उसने यह मामला इसलिए दायर किया क्योंकि पति का व्यवहार अनुचित था और उसे अनुशासित करने की आवश्यकता थी। उसने यह भी स्वीकार किया कि उसका उद्देश्य केवल पति पर दबाव बनाना था।

  3. झूठे मामले का प्रभाव:
    पति ने कोर्ट को बताया कि झूठे मामले के कारण उसे और उसके परिवार को गंभीर मानसिक पीड़ा का सामना करना पड़ा। उन्हें अनावश्यक रूप से पुलिस पूछताछ और अदालती कार्यवाही का सामना करना पड़ा, जिससे उनकी प्रतिष्ठा को भी नुकसान हुआ।


हाई कोर्ट का फैसला:

  1. क्रूरता की परिभाषा:
    बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि झूठे आरोप लगाना और कानून का दुरुपयोग करना, पति और उसके परिवार के सदस्यों के लिए मानसिक पीड़ा का कारण बनता है। इसे विवाह के लिए "क्रूरता" माना जाएगा।

  2. तलाक के लिए आधार:
    कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि पत्नी पति के खिलाफ झूठे आरोप लगाती है, तो यह तलाक के लिए पर्याप्त आधार हो सकता है।

  3. 498ए के दुरुपयोग पर चिंता:
    हाई कोर्ट ने इस मामले में यह भी कहा कि धारा 498ए का उद्देश्य महिलाओं को उनके वैवाहिक जीवन में संरक्षण प्रदान करना है, लेकिन इसे व्यक्तिगत दुश्मनी या प्रतिशोध के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।

  4. तलाक मंजूर:
    कोर्ट ने पाया कि झूठे मामले ने पति के साथ क्रूरता की सीमा पार कर दी थी। इसलिए, पति की तलाक की याचिका स्वीकार कर ली गई और शादी को खत्म करने का आदेश दिया गया।


कानूनी बिंदु:

  1. भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए:

    • यह धारा उन पत्नियों के लिए सुरक्षा प्रदान करती है जो अपने पति या ससुराल वालों द्वारा मानसिक या शारीरिक रूप से प्रताड़ित होती हैं।
    • इसका दुरुपयोग करने पर यह प्रतिशोधात्मक कार्य का साधन बन सकता है।
  2. तलाक के लिए क्रूरता:

    • हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(ia) के तहत, क्रूरता तलाक के लिए एक आधार है।
    • कोर्ट ने झूठे मुकदमे को मानसिक क्रूरता की श्रेणी में रखा।

फैसले का महत्व:

  1. 498ए के दुरुपयोग पर चेतावनी:
    यह फैसला उन मामलों में एक उदाहरण है, जहां कोर्ट ने धारा 498ए के दुरुपयोग को गंभीरता से लिया और इस तरह के झूठे मामलों को क्रूरता का आधार माना।

  2. न्यायिक संतुलन:
    यह सुनिश्चित करता है कि महिलाओं के लिए कानूनी प्रावधानों का उद्देश्य संरक्षण हो, न कि व्यक्तिगत दुश्मनी या प्रतिशोध।

  3. समान अधिकार:
    कोर्ट ने यह भी कहा कि वैवाहिक संबंधों में दोनों पक्षों को समान अधिकार और सम्मान मिलना चाहिए।


इस मामले में, पत्नी ने अपने पति पर झूठे आरोप लगाए थे, यह सोचकर कि इससे उसका व्यवहार सुधरेगा। लेकिन अदालत ने कहा कि झूठे आरोप लगाने से पति और उसके परिवार को मानसिक पीड़ा पहुंची। इसे "क्रूरता" माना गया और तलाक को मंजूरी दे दी गई।

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