कर्नाटक हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: तलाक की याचिका का स्थानांतरण क्यों खारिज हुआ

कर्नाटक हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: तलाक की याचिका का स्थानांतरण क्यों खारिज हुआ

कर्नाटक हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: तलाक की याचिका का स्थानांतरण क्यों खारिज हुआ


कर्नाटक हाईकोर्ट ने हाल ही में एक तलाक के मामले में स्थानांतरण (transfer) की याचिका खारिज कर दी। याचिका में महिला ने अपने पति के खिलाफ तलाक की प्रक्रिया को उसके गृह जिले से किसी अन्य जिले में स्थानांतरित करने की मांग की थी, ताकि उसे अपने पति के खिलाफ कानूनी कार्रवाई में सहूलियत हो।

यह मामला, सिविल याचिका संख्या 370/2024, न्यायमूर्ति चिल्लाकुर सुमलता के समक्ष सुना गया। याचिकाकर्ता, श्री मुरली बी.एस. द्वारा प्रतिनिधित्वित, ने एन.आर. पुरा, चिक्कमगलुरु जिले के वरिष्ठ सिविल जज की अदालत से होसनगर, शिवमोग्गा जिले के वरिष्ठ सिविल जज की अदालत में एम.सी. संख्या 7/2023 के स्थानांतरण की मांग की। याचिकाकर्ता ने सुनवाई के लिए 130 किलोमीटर की यात्रा करने में कठिनाई का हवाला दिया।


हाईकोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुए महत्वपूर्ण बिंदुओं पर टिप्पणी की:

  1. महिला की सुरक्षा और अधिकार: कोर्ट ने माना कि महिला की सुरक्षा और उसके अधिकारों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। हालांकि, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि तलाक के मामलों में महिला की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए, पति की सुविधा को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। पति को भी न्याय मिलना चाहिए और उसे अपनी कानूनी प्रक्रिया में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए।

  2. स्थानीय क्षेत्रीय न्यायपालिका का अधिकार: कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि कोई व्यक्ति अपने मामले को स्थानीय अदालत में ही लेकर आता है, तो यह उस इलाके की न्यायपालिका का अधिकार है कि वह मामले की सुनवाई करे। यह न्यायिक प्रणाली के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए महत्वपूर्ण होता है।

  3. तलाक का मामला: महिला ने यह याचिका उस स्थिति में डाली थी, जब उसके पति के खिलाफ तलाक का मामला एक निश्चित जिले में चल रहा था और उसे अपने गृह जिले से बाहर स्थानांतरित करने की आवश्यकता थी, क्योंकि वह मानती थी कि उसे वहां सुरक्षित वातावरण नहीं मिल रहा था।

  4. कोर्ट का निर्णय: कर्नाटक हाईकोर्ट ने यह निर्णय दिया कि तलाक के मामलों में सिर्फ एक पक्ष की सुविधा को देखते हुए, दूसरे पक्ष के अधिकारों और न्यायिक प्रक्रिया की नियमितता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि मामले का स्थानांतरण उचित नहीं है।

यह फैसला न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता और दोनों पक्षों के समान अधिकारों को बनाए रखने की दिशा में महत्वपूर्ण है।

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