रजनेश बनाम नेहा,सीआर.ए नंबर 730/2020 | भरण पोषण की नई गाइडलाइंस अब जरूरी नहीं कि पति मेंटेनेंस दें
सुप्रीम कोर्ट ने भरण पोषण पर एक बार फिर अपना अहम फैसला सुनाते हुए एक नई गाइडलाइन जारी कर दी है जो पतियों को बहुत ज्यादा राहत प्रदान करता है। आज हम बात कर रहे हैं केस राजनेश वर्सेस नेहा के मामले की, जिसमें जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस आर सुभाष रेडी के पीठ ने अपना अहम फैसला सुनाया।
पीठ ने कहा कि पत्नी को दिया जाने वाला मेंटेनेंस इतना नहीं होना चाहिए कि पति पर बोझ बन जाए। इसके लिए उसे चुकाना मुश्किल हो जाए और पत्नी के लिए भी इतनी कम रकम नहीं होनी चाहिए कि पत्नी को गुजारा करना मुश्किल हो जाए। कहने का मतलब यह है कि ना इतना ज्यादा हो कि पति चुका ना पाए और ना ही इतना कम होकर पत्नी अपना गुजारा ना कर पाए।
पीठ ने कहा कि कोर्ट में वकील पत्नी की जरूरत को इतना बढ़ा चढ़ा कर दिखाते हैं और पति को भी अपनी इनकम छुपाने की जरूरत नहीं है जबकि पति की इनकम को छुपाया जाता है।
इसके लिए कोर्ट ने सुझाव भी दिए और कहा कि इन सभी बातों पर विचार करना जरूरी है जैसे-
- पत्नी और बच्चों की जरूरत
- दोनों पार्टियों का स्टेटस कैसा है यह देखना जरूरी है| .
- क्या अभी तक या पत्नी के पास इनकम का कोई सोर्स है या फिर नहीं है।
- वैवाहिक घर का रहन सहन कैसा है।
- और सबसे मेन बात क्या पत्नी ने अपनी जॉब बच्चों के लालन-पालन के लिए या घर में बुजुर्गों के लिए छोड़ा था या वह जानबूझकर कमाना नहीं चाहते थे।
- और मुकदमे की लागत क्या है।
इन सभी बातों पर विचार करना बहुत जरूरी है इसके अलावा जब मेंटेनेंस निर्धारित की जाए तो यह भी देखा जाना चाहिए कि
- पति की वित्तीय क्षमता क्या है।
- पति की वास्तविक इनकम क्या है।
- उसके खर्चे क्या है परिवार में उस पर कितने लोग आश्रित हैं।
- इसके अलावा पति को कोई देनदारी वगैरा तो नहीं है।
मेंटेनेंस को निर्धारित करने के लिए 6 गाइडलाइंस (Rajnesh vs. Neha) जारी की है जो अबसे हर फैमिली कोर्ट को फॉलो करने होंगे।
- कोर्ट को यह ध्यान में रखना होगा कि पत्नी पढ़े लिखे होते हुए भी पति के घर में नौकरी नहीं कर रही थी या छोड़ दी थी। ताकि वह परिवार और बच्चों की देखभाल कर सके। तो आज की सिचुएशन को देखते हुए यह देखना होगा कि पत्नी के लिए इतने सालों बाद नौकरी करना एक मुश्किल काम होगा। क्योंकि बढ़ती उम्र के साथ नौकरी के नए चैलेंज का सामना करना होगा। या फिर उसे आज की नई तकनीक को सीखना भी पड़ सकता है तो कई सालों के बाद नौकरी करना पत्नी के लिए मुश्किल भरा हो सकता है।
- घरेलू हिंसा के तहत निवास का आदेश पारित करते समय कोर्ट पति को यह आदेश दे सकता है कि वह किराए का और दूसरे खर्चों का भुगतान करें .
- एक पति यह नहीं कह सकता कि वह अपनी पत्नी और बच्चों को कमा कर खिला नहीं सकता। इसके अलावा अगर पत्नी कमाती है तो भी यह देखना होगा कि जिस तरह की जीवन शैली से वह पति के घर में रहती थी उसी तरह से वह कमाकर आज भी रह सकती है या फिर नहीं।
- यह जिम्मेदारी पति की होती है कि वह यह प्रूफ करें कि वह कितना कमाता है अपने परिवार का भरण पोषण कर सकता है या फिर नहीं।
- बच्चों की मेंटेनेंस देते समय उसमें बच्चों के रहने खाने का खर्च, कपड़ों का खर्च, रहने और मेडिकल और एजुकेशन का खर्चा शामिल किया जाता है इसके अलावा कोचिंग क्लासेस या फिर प्रोफेशनल एजुकेशन का खर्च पर भी ध्यान देना होगा। और यह खर्चे की भी जरूरत से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। अगर पत्नी कमाती है तो खर्च दोनों को उठाना पड़ेगा जो बराबर बटेगा।
- अगर जीवन साथी विकलांग है बीमार रहता है और उन्हें निरंतर खर्चों की जरूरत है तो उन पर भी विचार किया जाएगा।
तो यह है छह गाइडलाइन जो मेंटेनेंस को लेकर कोर्ट ने जारी की है डीवी एक्ट और सीआरपीसी 125 के तहत मेंटेनेंस के लिए कोई भी आवेदन कर सकता है अगर पहली कार्रवाई के दौरान पति को रखरखाव देने के लिए कहा गया है तो दूसरी कार्यवाही के दौरान पहले कार्यवाही में दी गई मेंटेनेंस को ध्यान में रखना जरूरी होगा।
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