आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट का फैसला: "सहमति डिक्री के खिलाफ कोई अपील नहीं हो सकती"

आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट का फैसला: "सहमति डिक्री के खिलाफ कोई अपील नहीं हो सकती" Andhra Pradesh High Court verdict: "No appeal lies against consent decree"


आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट का फैसला: "सहमति डिक्री के खिलाफ कोई अपील नहीं हो सकती"



  • "आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: 'सहमति डिक्री' के खिलाफ अपील नहीं हो सकती"
  • "क्या है 'सहमति डिक्री'? आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय"
  • "सहमति डिक्री पर हाईकोर्ट का निर्णय: तलाक मामले में अपील की गुंजाइश नहीं!"
  • "आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट का ताज़ा फैसला: सहमति डिक्री पर अपील की कोई जगह नहीं"
  • "सहमति डिक्री और अपील: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय"
  • "हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: तलाक मामले में सहमति डिक्री के खिलाफ अपील नहीं की जा सकती"
  • "सहमति डिक्री पर अपील का मामला: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला"
  • "सहमति डिक्री पर अपील क्यों नहीं की जा सकती? आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने समझाया"
  • आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला दिया, जिसमें कहा कि "सहमति डिक्री" (Consent Decree) के खिलाफ कोई अपील नहीं की जा सकती है। इस फैसले के तहत, अगर दोनों पक्षों के बीच किसी मामले में आपसी सहमति से समझौता हुआ है और न्यायालय ने उसी समझौते के आधार पर डिक्री जारी की है, तो इसके खिलाफ अपील की अनुमति नहीं होगी।

    क्या है सहमति डिक्री?

    सहमति डिक्री वह स्थिति होती है, जब दोनों पक्ष किसी मामले को न्यायालय के बाहर आपसी सहमति से सुलझा लेते हैं और उस समझौते को न्यायालय अपनी डिक्री में बदल देता है। यह तब होता है जब दोनों पक्ष एक दूसरे के साथ मिलकर विवाद को हल करने के लिए तैयार होते हैं और न्यायालय में इसके बारे में लिखित सहमति प्रस्तुत करते हैं। इसे एक प्रकार से "सुलह डिक्री" भी कहा जा सकता है।

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट का निर्णय:

    यह अपील पत्नी दामरला ज्योति ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(ia) के तहत 2023 के एचएमओपी संख्या 36 में 3 जुलाई, 2024 को दी गई तलाक की डिक्री के खिलाफ दायर की थी। अपील में प्रतिवादी उनके पति कोडीदासु उदय बाबू उदय शिव नागा बाबू थे। मुकदमे के दौरान पक्षों के बीच आपसी समझौते के बाद तलाक का आदेश पारित किया गया।

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने इस मामले में तलाक के एक मामले की अपील खारिज कर दी, जिसमें एक पक्ष ने सहमति डिक्री के खिलाफ अपील की थी। कोर्ट ने कहा कि यदि दोनों पक्ष किसी विवाद को आपसी सहमति से हल कर लेते हैं, तो उस पर दी गई डिक्री के खिलाफ अपील की कोई गुंजाइश नहीं है।

    हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि अगर किसी मामले में दोनों पक्षों की सहमति से समझौता किया गया हो और वही समझौता न्यायालय द्वारा डिक्री में बदला गया हो, तो वह डिक्री अंतिम मानी जाती है। सहमति डिक्री को अदालत की स्वीकृति के रूप में माना जाता है और इस पर अपील करने का अधिकार नहीं होता।

    उदाहरण के रूप में:

    माना कि एक दंपत्ति ने तलाक के मामले में आपसी सहमति से समझौता किया और दोनों ने यह निर्णय लिया कि वे एक-दूसरे से अलग हो जाएंगे, साथ ही संपत्ति वितरण, बच्चों की कस्टडी आदि पर सहमति बनाई। इसके बाद, यह समझौता न्यायालय में पेश किया गया और न्यायालय ने इसे सहमति डिक्री के रूप में पारित कर दिया। यदि कोई पक्ष बाद में इस डिक्री के खिलाफ अपील करता है, तो अदालत ने कहा कि इस पर अपील की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यह एक सहमति आधारित निर्णय था।

    इस फैसले का महत्व:

    यह फैसला न्यायालय के लिए यह स्पष्ट करता है कि यदि दोनों पक्षों के बीच समझौता हुआ है और उसी पर डिक्री दी गई है, तो न्यायालय का उद्देश्य है कि इस सहमति को कायम रखा जाए। इससे कोर्ट के समय और संसाधनों की बचत होती है और यह सुनिश्चित होता है कि कोई भी पक्ष बिना उचित कारण के सहमति के निर्णय को बदलने की कोशिश न करें।

    यह निर्णय यह भी बताता है कि सहमति डिक्री एक अंतिम और प्रतिबद्ध समझौता है, जिसका पालन करना जरूरी है और उस पर अपील करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं होता।

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