उड़ीसा हाईकोर्ट का यह मामला महिलाओं के अधिकारों और उनके सम्मान की सुरक्षा से जुड़ा है। इसमें कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि किसी महिला की पवित्रता (Chastity) उसकी अमूल्य संपत्ति है, और अगर पति झूठे आरोप लगाकर उसके चरित्र पर सवाल उठाता है, तो यह क्रूरता (Mental Cruelty) के बराबर है। इस प्रकार की स्थिति में पत्नी को अलग रहने का और भरण-पोषण का दावा करने का पूरा अधिकार है।
मामले का विस्तृत विवरण:
केस टाइटलः आईएम बनाम एमएम
केस संख्या: आरपीएफएएम संख्या 09/2024
1. मामले की पृष्ठभूमि:
- विवाह और अलगाव:
- पति-पत्नी का विवाह 5 मई 2021 को हुआ था।
- शादी के कुछ महीनों बाद, पति ने पत्नी के चरित्र पर संदेह करना शुरू कर दिया और उसके खिलाफ झूठे आरोप लगाए।
- इसके चलते पत्नी ने 28 अगस्त 2021 को अपना ससुराल छोड़ दिया।
2. पारिवारिक न्यायालय का आदेश:
- पत्नी ने पारिवारिक न्यायालय में आवेदन दिया, जिसमें उसने अपने पति पर चरित्र हनन और मानसिक प्रताड़ना का आरोप लगाया।
- कोर्ट ने पति को आदेश दिया कि वह पत्नी को ₹3,000 प्रति माह भरण-पोषण के रूप में दे।
3. पति की अपील:
- पति ने इस आदेश को उड़ीसा हाईकोर्ट में चुनौती दी।
- उसका तर्क था कि पत्नी ने बिना किसी पर्याप्त कारण के उसे छोड़ दिया, इसलिए वह भरण-पोषण की हकदार नहीं है।
4. हाईकोर्ट का फैसला:
- जस्टिस गौरीशंकर सतपथी की एकल पीठ ने पारिवारिक न्यायालय के आदेश को सही ठहराया।
- कोर्ट ने कहा:
- पवित्रता का महत्व: महिला की पवित्रता उसकी सबसे अमूल्य संपत्ति है।
- बिना सबूत आरोप लगाना: पति का यह आरोप कि पत्नी के किसी अन्य व्यक्ति से संबंध हैं, बिना किसी ठोस सबूत के लगाए गए थे।
- मानसिक प्रताड़ना: इस तरह के आरोप मानसिक क्रूरता के समान हैं, और पत्नी के लिए यह अलग रहने का वैध कारण है।
- "इस मामले में, अपनी पत्नी की बेवफाई के बारे में कोई सबूत पेश किए बिना, पति ने केवल अपनी पत्नी का चरित्र हनन किया है, जो अपने आप में पत्नी द्वारा अपने पति के साथ रहने से इनकार करने का आधार है। इसलिए, इस मामले में पत्नी द्वारा बिना किसी पर्याप्त कारण के उसके साथ न रहने के बारे में पति की दलील खारिज किए जाने योग्य है और इस पर विचार नहीं किया जा सकता।" कोर्ट ने पत्नी को भरण-पोषण देने का आदेश बरकरार रखा।
कानूनी दृष्टिकोण:
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धारा 125 सीआरपीसी:
- यह धारा पत्नी, बच्चों और माता-पिता को भरण-पोषण का अधिकार देती है।
- अगर पति पत्नी को मानसिक रूप से प्रताड़ित करता है या उसके चरित्र पर झूठे आरोप लगाता है, तो यह भरण-पोषण का वैध आधार हो सकता है।
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मानसिक क्रूरता:
- सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाईकोर्ट्स ने कई मामलों में कहा है कि चरित्र हनन का आरोप मानसिक क्रूरता के दायरे में आता है।
इस मामले की महत्वपूर्ण बातें:
- बिना सबूत के पत्नी के चरित्र पर सवाल उठाना गलत है।
- अदालत ने महिला के सम्मान को सर्वोपरि रखा।
- भरण-पोषण का अधिकार उन महिलाओं को मिलता है जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं और जिन्हें पति ने प्रताड़ित किया है।
महत्वपूर्ण फैसले और संदर्भ:
- के. श्रीनिवास राव बनाम डीए श्रीदेवी (2013):सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बिना आधार के चरित्र पर संदेह करना मानसिक क्रूरता है।
- धारा 498ए आईपीसी:पति या ससुराल वालों द्वारा क्रूरता करने के मामलों में लागू होती है।
अगर आप इस केस से जुड़ी और जानकारी या कानूनी प्रक्रिया के बारे में जानना चाहते हैं, तो मुझे बताएं!
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