"सज़ा कम नहीं होगी: सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय"
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अपने फैसले में कहा है कि यदि किसी अभियुक्त ने समान आपराधिक इरादे (common intention) से कार्य किया हो, तो केवल इस आधार पर सज़ा को कम नहीं किया जा सकता कि उस अभियुक्त द्वारा व्यक्तिगत रूप से पहुंचाई गई चोट गंभीर नहीं थी।
केस टाइटल: कर्नाटक राज्य बनाम बट्टेगौड़ा एवं अन्य।
मामले का विवरण:
पृष्ठभूमि:
- जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की खंडपीठ ने कर्नाटक राज्य की अपील पर सुनवाई की, यह मामला एक आपराधिक घटना से जुड़ा है, जिसमें अभियुक्तों ने सामूहिक रूप से हमला किया था।
- अभियुक्तों में से एक ने दावा किया कि उसकी भूमिका घटना में कम थी, और उसने व्यक्तिगत रूप से गंभीर चोट नहीं पहुंचाई थी।
अभियुक्त का तर्क:
- अभियुक्त ने कहा कि उसने समान इरादे से काम नहीं किया और केवल मामूली चोट पहुंचाई थी, इसलिए उसे कम सज़ा दी जानी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट का अवलोकन:
- समान आपराधिक इरादे का महत्व:सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि IPC की धारा 34 के तहत, यदि किसी अपराध में समान आपराधिक इरादे से कार्य किया गया हो, तो सभी अभियुक्त समान रूप से उत्तरदायी हैं।
- चोट की गंभीरता:व्यक्तिगत रूप से लगी चोट की गंभीरता सज़ा को प्रभावित नहीं कर सकती, यदि यह सिद्ध हो कि अभियुक्त ने अपराध को अंजाम देने में समान इरादे से भाग लिया।
निर्णय:
- सुप्रीम कोर्ट ने अभियुक्त का तर्क खारिज करते हुए सज़ा को सही ठहराया।
- यह स्पष्ट किया गया कि समान आपराधिक इरादे में शामिल व्यक्ति अपराध के परिणामों के लिए समान रूप से उत्तरदायी होते हैं।
कानूनी दृष्टिकोण:
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 34:
- यदि एक आपराधिक कृत्य समान आपराधिक इरादे के तहत किया जाता है, तो उसमें शामिल सभी व्यक्तियों को समान सज़ा दी जा सकती है, भले ही उनकी व्यक्तिगत भूमिका कितनी ही कम क्यों न हो।
सुप्रीम कोर्ट के अवलोकन:
- समान इरादे से किए गए अपराध में यह देखना आवश्यक नहीं है कि किसने कितनी चोट पहुंचाई।
- अपराध में भागीदारी और समान इरादा सज़ा के लिए प्रमुख आधार हैं।
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