"क्या घरेलू हिंसा मामलों में हाईकोर्ट केस रद्द कर सकता है? इलाहाबाद HC का बड़ा फैसला" Domestic Violence Act Vs CrPC 482

घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत किसी भी कार्यवाही के खिलाफ धारा 528 बीएनएसएस/482 सीआरपीसी में याचिका पोषणीय है या नहीं? इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला लिया




📌 केस टाइटल: Ram Lotan Vishwakarma And Others vs State Of U.P. Thru. Prin. Secy. Home U.P. Civil Secrett. Lko. And Another
📌 केस नंबर: आवेदन संख्या U/S 482 - 8107/2022
📌 न्यायालय: इलाहाबाद हाईकोर्ट
📌 न्यायाधीश: न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला


मामले की पूरी जानकारी:

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण कानूनी मुद्दे पर विचार करते हुए कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 (Domestic Violence Act, 2005) के तहत चल रही कार्यवाही के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 528 बीएनएसएस (Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023) या धारा 482 सीआरपीसी (Criminal Procedure Code) के तहत याचिका दायर करना पोषणीय (Maintainable) है या नहीं, यह एक गंभीर कानूनी प्रश्न है।

इस सवाल को लेकर कोर्ट ने कहा कि इस पर स्पष्ट निर्णय देने के लिए इसे बड़ी पीठ (Larger Bench) को भेजा जाना चाहिए, ताकि इस विषय पर एक स्पष्ट और विस्तृत व्याख्या की जा सके।


मामले की पृष्ठभूमि:

🔹 याचिकाकर्ता राम लोटन विश्वकर्मा और अन्य ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में सीआरपीसी की धारा 482 के तहत याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत दायर एक कार्यवाही को चुनौती दी थी।
🔹 उन्होंने तर्क दिया कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत की गई कार्यवाही न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है और इसे रद्द किया जाना चाहिए।
🔹 सरकार और अभियोजन पक्ष ने इसका विरोध करते हुए कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत चल रही कार्यवाही को सीआरपीसी की धारा 482 या बीएनएसएस की धारा 528 के तहत रद्द नहीं किया जा सकता क्योंकि यह एक विशेष अधिनियम (Special Act) के तहत आने वाला मामला है।
🔹 हाईकोर्ट ने इस मामले को सुनते हुए महसूस किया कि यह एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न है और इसे विस्तृत विचार-विमर्श के लिए बड़ी पीठ को भेजा जाना चाहिए।


कोर्ट द्वारा उठाए गए मुख्य कानूनी प्रश्न:

क्या घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत चल रही कार्यवाही को धारा 482 सीआरपीसी या धारा 528 बीएनएसएस के तहत रद्द किया जा सकता है?
क्या घरेलू हिंसा अधिनियम के प्रावधान विशेष रूप से सीआरपीसी की धारा 482 के ऊपर लागू होंगे?
क्या घरेलू हिंसा मामलों में पुरुषों को गलत तरीके से फंसाने की प्रवृत्ति को रोकने के लिए न्यायिक हस्तक्षेप की जरूरत है?
क्या घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत दायर मामलों को केवल विशेष अदालतों में ही सुना जाना चाहिए, या हाईकोर्ट की शक्ति बनी रहेगी?


कोर्ट का अवलोकन और निर्देश:

📌 हाईकोर्ट ने कहा कि चूंकि यह एक जटिल कानूनी मुद्दा है, इसलिए इस पर एक विस्तृत और स्पष्ट निर्णय आवश्यक है।
📌 कोर्ट ने इस मामले को बड़ी पीठ (Larger Bench) को रेफर कर दिया, ताकि इस विषय पर न्यायिक दृष्टिकोण स्पष्ट हो सके।
📌 जब तक बड़ी पीठ इस मामले में कोई अंतिम निर्णय नहीं देती, तब तक इसी तरह की सभी याचिकाओं को स्थगित (Hold) रखा जाएगा।


इस फैसले का कानूनी प्रभाव:

⚖️ यह निर्णय उन मामलों में एक मिसाल बनेगा, जहां घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत चल रही कार्यवाही को हाईकोर्ट में सीआरपीसी की धारा 482 या बीएनएसएस की धारा 528 के तहत चुनौती दी जाती है।
⚖️ अगर बड़ी पीठ यह तय करती है कि ऐसे मामलों को धारा 482 या 528 के तहत चुनौती दी जा सकती है, तो इससे कई लंबित मामलों में राहत मिल सकती है।
⚖️ अगर कोर्ट यह फैसला देता है कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत मामलों को केवल विशेष अदालतों में ही चुनौती दी जा सकती है, तो इससे हाईकोर्ट की भूमिका सीमित हो जाएगी।


महत्वपूर्ण कानून और प्रावधान:

📜 घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 (Domestic Violence Act, 2005): यह अधिनियम महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने और उन्हें कानूनी सुरक्षा प्रदान करने के लिए बनाया गया था।
📜 सीआरपीसी की धारा 482: इसमें हाईकोर्ट को किसी भी आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की शक्ति दी गई है यदि मामला न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग हो।
📜 बीएनएसएस की धारा 528: यह धारा नए भारतीय न्याय संहिता (BNS) में शामिल की गई है और यह भी अदालतों को शक्तियां देती है कि वे अन्यायपूर्ण आपराधिक मामलों को रद्द कर सकें।


निष्कर्ष:

📌 हाईकोर्ट ने माना कि घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के मामलों को हाईकोर्ट में चुनौती देने को लेकर स्पष्टता की जरूरत है।
📌 इस कानूनी प्रश्न को बड़ी पीठ को भेजा गया है ताकि इस पर अंतिम और विस्तृत निर्णय आ सके।
📌 अगर बड़ी पीठ यह तय करती है कि घरेलू हिंसा मामलों को धारा 482 CrPC या 528 BNS के तहत चुनौती दी जा सकती है, तो इससे हजारों लंबित मामलों में नई दिशा मिल सकती है।

💬 क्या आपको लगता है कि घरेलू हिंसा मामलों में हाईकोर्ट को हस्तक्षेप करने की शक्ति होनी चाहिए? अपनी राय कमेंट में बताएं! 🚀

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