पुलिस के पकड़ने पर जमानत कैसे कराये | How to Get Bail in India Define Rule and Procedure

पुलिस के पकड़ने पर जमानत कैसे कराये | How to Get Bail in India Define Rule and Procedure

अपराध करने वाले व्यक्ति को पुलिस द्वारा गिरफ्तार करके अदालत के सामने में अभियोग के पेश किया जाता है। अभियोग का निर्णय अदालत द्वारा किया जाना होता है। यह एक लंबी प्रक्रिया होती है। इस कारण कानून में यह प्रावधान रखा गया है कि जहां संभव हो वहां अपराधी को न्यायिक हिरासत में रखने के बजाय कुछ शर्तों के अधीन रखते हुए रिहाई प्रदान कर दी जाए।

 

अभियुक्त को रिहाई प्रदान करने के लिए सिक्योरिटी रकम प्रतिभूति और सुरक्षा रकम को सामान्यतया जमानत कहा जाता है। इस प्रकार की जमानत अभियुक्त का कोई परिचित या उसके रिश्तेदार प्रदान करते हैं। तब जमानत पत्रों एवं बंध (Bail Bond) पत्रों की शर्तों के अनुसार अभियुक्त को जमानत पर रिहा कर दिया जाता है।




अपराध के प्रकार

अपराध को जमानत के आधार पर दो भागों में विभाजित किया गया है। जमानतीय प्रकृति के अपराध और अजामनतीय प्रकृति के अपराध । जमानतीय प्रकृति के अपराध होने पर अभियुक्त की जमानत हो जाती हैं। जबकि आजमानती़य मामलों में जमानत अधिकतर स्वरूप नहीं होती है।

जमानत कैसे मिलती है

 

न्यायालय जमानत स्वीकार करते हुए कुछ शर्तों की पालना अभियुक्त से चाहता है। जैसे वह कोर्ट में प्रत्येक पेशी पर उपस्थित होगा।

विचारणीय अपराध के मामले में वह गवाहों पर प्रतिकूल प्रभाव डालने के कार्य नहीं करेगा। ना ही वह विचारणी़य अपराध के सबूत और साक्ष्य मिटाने के लिए अपनी रिहाई का प्रयोग करेगा।

यदि जमानत पत्रों एवं बंध पत्रों की शर्तों की पालना नहीं की जाती, तो अभियुक्त को पुनः गिरफ्तार कर लिया जाता है।




कई अजमानतीय मामलों में भी अभियुक्त को जमानत पर रिहा कर दिया जाता है। ऐसे मामलों में कोर्ट अपने विवेक से यह निर्णय करता है। लेकिन मृत्यु दंड और आजीवन कारावास के अभियुक्त को सामान्यतया जमानत पर रिहाई नहीं मिलती। लेकिन यह अपराध यदि 16 वर्ष से कम उम्र व्यक्ति द्वारा, किसी स्त्री द्वारा अपंगअपंगत् अथवा शारीरिक रूप से कमजोर व्यक्ति द्वारा किए जाते हैं, तो अदालत उनकी जमानत स्वीकार कर सकता है।

 

फिर भी मामले की प्रकृति व परिस्थिति को देखते हुए स्वविवेक से अदालत द्वारा निर्णय लिया जाता है।

 

ऐसे व्यक्तियों को भी जमानत पर नहीं छोड़ा जाता है, जो आजीवन कारावास से या 7 वर्ष से अधिक की सजा पूर्व में काट चुका है। जिसे 2 बार से अधिक प्रकरणों में अजमानतीय अपराध के कारण न्यायालय द्वारा सजा सुनाई जा चुकी है।

 

जमानतीय प्रकृति के अपराध में यदि व्यक्ति न्यायिक अभिरक्षा में इतना समय गुजार दें कि सामान्य स्थिति में उसकी जमानत पर रिहाई होना संभव था। ऐसे में यह माना जा सकता है कि व्यक्ति निर्धन है, और जमानत के आर्थिक तत्वों की पूर्ति नहीं कर पा रहा है । ऐसे में कोर्ट विवेक एवं परिस्थितियों के अनुसार निर्णय करते हुए प्रतिभुओं रहित बंध पत्र का निष्पादन करने पर जमानत पर रिहा कर सकती है।\




अग्रिम जमानत (How to Get Bail in India Define Rule and Procedure)

 

अग्रिम जमानत जहां अदालत द्वारा व्यक्ति की गिरफ्तारी के पश्चात स्वीकार की जाती है, वही अग्रिम जमानत व्यक्ति की गिरफ्तारी के पहले ही प्रदान की जाती है। दंड प्रक्रिया संहिता संशोधन अधिनियम 2005 की धारा 438 द्वारा अग्रिम जमानत को निम्न प्रकार से परिभाषित किया गया हैः

 

जब किसी व्यक्ति को यह विश्वास करने का कारण है कि उसको किसी अजमानतीय अपराध के किए जाने के अभियोग से गिरफ्तार किया जा सकता है। तो वह अग्रिम जमानत के लिए उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय को आवेदन कर सकता है। और यदि वह न्यायालय ठीक समझे तो वह निर्देश दे सकता है। कि ऐसी गिरफ्तारी की स्थिति में उसको जमानत पर छोड़ दिया जाए।अग्रिम जमानत देते समय निम्न तथ्यो पर विचार किया जाता है।

 

1. अभियोग प्रकृति और गंभीरता,
2. क्या आवेदक को पूर्व में किसी संगे अपराध के लिए दंडित किया गया है,
3. न्याय से आवेदक के भागने की भावना,
4. जहां आवेदक द्वारा उसे इस प्रकार गिरफ्तार कराकर क्षति पहुंचाने या अपमान करने के उद्देश्य अभियोग लगाया गया बताया है।
उच्च न्यायालय या तो तुरंत आवेदन स्वीकार करेगा या अग्रिम जमानत मंजूर करने के लिए अंतरिम आदेश देगा। लेकिन अंतरिम आदेश पारित नहीं किया गया है, या आवेदन को स्वीकार कर दिया गया हो तो पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी आवेदक को आशंकित अभियोग के आधार पर बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकेगा।




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अग्रिम जमानत प्राप्त व्यक्ति को कुछ शर्तों पर जमानत दी जाती है। उसे पुलिस के प्रश्नों के उत्तर देने के लिए उपस्थित रहना होगा। कोर्ट की आज्ञा के बिना वह आदेश से बाहर नहीं जाएगा वह ऐसा कोई कार्य नहीं करेगा जिससे यह लगे कि वह इस मामले के गवाहों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर रहा है। उन्हें डरा धमका रहा है या तथ्यों को प्रकट ना करने के लिए प्रेरित कर रहा है।

 

अग्रिम जमानत की सुनवाई के दौरान यदि सरकारी वकील अनुशंसा करें कि अग्रिम जमानत आवेदन करने वाले की न्यायालय में उपस्थिति न्याय हित मे आवश्यक है, तो न्यायालय उसकी अनुशंसा स्वीकार कर सकता है।

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