Jurisprudence Notes for LLM || विधिशास्त्र की परिभाषा आप किस रूप में करेंगे आपके अनुसार कौन सी परिभाषा सर्वाधिक उपयुक्त है
विधिशास्त्र शब्द की उत्पत्ति दो लैटिन शब्दों ज्यूरिस और प्रूडेंशिया कि योग से हुई है। (Jurisprudence Notes for LLM) ज्यूरिस शब्द का तात्पर्य विधि से है। जबकि प्रूडेंशिया शब्द का अर्थ है ज्ञान। इस प्रकार शाब्दिक अर्थ के अनुसार विधिशास्त्र की विधि का ज्ञान ही कहा जाना चाहिए। परंतु यथार्थ में यहां विधि का ज्ञान मात्र ना होकर विधि का क्रमबद्ध ज्ञान है। इसलिए प्रसिद्ध विधिवेत्ता सावंड ने विधिशास्त्र की विधि का ज्ञान निरूपित किया है। यहां विज्ञान, से आशय विषय के क्रमबद्ध अध्ययन से है। यही कारण है, कि विधिशास्त्र की विधि सिद्धांतों का सूक्ष्म गहन क्रमबद्ध अध्ययन कहा जाता है।
इस संदर्भ में विचारणीय प्रश्न यह है,कि यदि विधिशास्त्र को विधि विज्ञान कहा जाए तो विधि शब्द का अर्थ क्या है?
व्यापक अर्थ में मानव आचरण से संबंधित किसी भी नियम सिद्धांत या आदर्श को विधि की संज्ञा दी जा सकती है।जैसे कि भौतिक शास्त्र के अंतर्गत गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत या दर्शनशास्त्र में नैतिकता और विषयक नियम। परंतु विधि दृष्टि से विधिशब्द से आशय ऐसे नियमों से है,जो समाज में मानव नैतिकता विषयक नियम। परंतु विधिक दृष्टि से विधि शब्द से आशय ऐसे नियमों से है जो समाज में मानव आचरण को नियंत्रित करते हैं।
समाज में रहते हुए व्यक्ति को जीवन के विभिन्न पहलुओं से पथ भ्रमण करना पड़ता है। इस उपक्रम में वह अन्य व्यक्ति के संपर्क में आता है। अनेक अवसरों पर उसके साथ समाज के अन्य सदस्यों के हितों में परस्पर टकराव की स्थिति उत्पन्न होने की संभावना रहती है।
उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है, कि विधिशास्त्र का संबंध विधि के मूलभूत सिद्धांतों से है।
विभिन्न विधिवेत्तओ ने विधिशास्त्र की अलग-अलग परिभाषाएं दी है। (Jurisprudence Notes for LLM)
प्रसिद्ध दार्शनिक से सिसरो ने विधिशास्त्र की परिभाषा देते हुए इसे ज्ञान, का दार्शनिक पक्ष कहा है।
प्रसिद्ध रोमन विधिवेत्ता अल्पियन ने (डाइजेस्ट) नामक अपने ग्रंथ में विधिशास्त्र को प्राचीन एवं अनुचित का विज्ञान कहा है। यह परिभाषा विधिशास्त्र शब्द की उत्पत्ति के अनुकूलता पर प्रकाश डालती है। पर यह इतनी अधिक व्यापक है। कि इसे नीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र तथा दर्शनशास्त्र आज के प्रति लागू किया जा सकता है।
उल्लेखनीय है, कि अल्पियन द्वारा दी गई विधिशास्त्र की परिभाषा तथा आवर्ती भारत के धर्म की संकल्पना में निकटतम साम्य है। हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार धर्म मानव आचरण के ऐसे नियमों का विधान है। जो मनुष्य को बहुत ही दिव्य आध्यात्मिक विकास की ओर प्रेरित करता है। परंतु वर्तमान काल में संदर्भ में विधिशास्त्र का अर्थ मानव के ऐसे कार्य तथा संबंधों तक ही सीमित है। जिन्हें हिंदू विधि शास्त्रियों ने व्यवहार की संज्ञा दी है। (Jurisprudence Notes for LLM)
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परिचय (Jurisprudence Introduction):-
प्रसिद्ध आंग्ल विधि शास्त्री जॉन ऑस्टिन विधिशास्त्र को वास्तविक विधि का दर्शन कहा गया है। उनके मतानुसार विधिशास्त्र को वास्तविक अर्थ है, कि विधिक संकल्पानाओ का प्रारूपिक संश्लेषण करना, परंतु बकलैंड आस्टिन की इस परिभाषा को अत्यंत संकीर्ण मानते हुए कहा है, कि वर्तमान समय में विधिशास्त्र की परिभाषा अधिक विस्तृत होनी चाहिए। इस लिस्ट में से प्रोफेसर ज्यूलियस स्टोन द्वारा दी गई परिभाषा अधिक तर्कसंगत प्रतीत होती है। उन्होंने विधिशास्त्र को अधिवक्ताओं की बहुमुखी अभिव्यक्ति निरूपित किया है। इसका आशय यह है,कि वर्तमान ज्ञान के अन्य स्त्रोतों के आधार पर अधिवक्तागण विधि की अवधारणा आदर्शों तथा पद्धतियों का जो परीक्षण करते हैं। उसे विधिशास्त्र की विषय वस्तु कहा जा सकता है।
प्रोफेसर स्टोन ने विधिशास्त्र की विषय वस्तु को 3 वर्गों में विभाजित किया है। जिन्हें क्रमशः विश्लेषण विधि शास्त्र, क्रियात्मक विधिशास्त्र तथा न्याय के सिद्धांत कहा गया है।
सामण्ड के अनुसार- jurisprudence introduction by Salmond
प्राथमिक दृष्टि से विधिशास्त्र में सामण्ड कानूनी सिद्धांतों का समावेश है। यह विधि का ज्ञान है। इसलिए इसे व्यावहारिक विधि के प्रारंभिक सिद्धांतों का विज्ञान भी कहा गया है। सामण्ड के विचार ही विधिशास्त्रों द्वारा लागू की जाती है। तथा यह धार्मिक कानूनी या नैतिक संबंधी नियमों से भिन्न है। विधि को देश की सीमा में न्यायालय तथा न्याय अधिकारियों द्वारा लागू किया जाता है। तथा इसका उल्लंघन किया जाने पर शास्ती की अवस्था होती है। अतः यह व्यावहारिक ज्ञान की शाखा है।
सामण्ड ने विधिशास्त्र की संख्या दो अर्थों में की है। विस्तृत अर्थ में विधिशास्त्र से उनका अभिप्राय नागरिक विधि के विज्ञान से है। जिसके अंतर्गत समस्त विधिक सिद्धांतों का क्रमबद्ध अध्ययन किया जाता है। सभी विदेशियों का आशय उस विधि विशेष से है, जो किसी देश द्वारा अपने निवासियों के प्रति लागू की जाती है।और जिसे उस देश के नागरिक अधिवक्ता और न्यायालय ऐसा मानने के लिए वादे होते हैं। इस प्रकार सामान्य के अनुसार विदेशियों के पास ऐसी विधियों का विज्ञान है, जिन्हें न्यायालय लागू करता है।
सामण्ड ने सिविल विधि गेम विज्ञान के रूप में विधि शास्त्र के निम्न तीन रूप बताए हैं-
(1) वैधानिक इतिहास- इसका प्रयोजन उस ऐतिहासिक कार्यवाही का वर्णन करना है। जिससे विधि प्रणाली विकसित होते हुए वर्तमान अवस्था को प्राप्त हुई है।
((2) विधिक प्रतिपादन- इसका प्रयोजन किसी काल विशेष में प्रचलित वास्तविक विधि की विषय वस्तु का वर्णन करना है।
(3) विधायक विज्ञान- इसका उद्देश्य विधि का इस प्रकार निरूपण करता है, जैसे कि वह होनी चाहिए।
सामण्ड के अनुसार, उपर्युक्त पहले अर्थ में विधिशास्त्र की विषय वस्तु अत्यंत संकीर्ण है। इस अर्थ में विधिशास्त्र नागरिक विधि के प्राथमिक सिद्धांतों का विज्ञान है। इससे उनका आशय विधि के उन मूल्यों सिद्धांतों से है। जो विभिन्न देशों के नागरिक विधियों का आधार स्तंभ होते हैं। इस प्रकार सामंड का यह स्पष्ट मत है, कि विधिशास्त्र में विधि विशेष का अध्ययन नहीं किया जाता। वर्ण विधियों के आधारभूत सिद्धांतों का कार्य, कारण,विषयक क्रमबद्ध अध्ययन किया जाता है। जो किसी विषय को शास्त्र परिणत करने के लिए आवश्यक है। उल्लेखनीय है, कि इस दृष्टिकोण से सामण्ड की परिभाषा अन्य परिभाषा की तुलना में अधिक सरल स्पष्ट तथा व्यावहारिक प्रतीत होती है।
प्रोफ़ेसर हॉलैंड ने विधिशास्त्र को वास्तविक विधि का औपचारिक विज्ञान निरूपित किया है।
इस विषय के प्रति व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाते हुए उन्होंने विधिशास्त्र की विधि के प्रश्न एवं विचारों तथा सुधारों की संबंधित शास्त्र माना जाता है। उनका विचार यह है, कि विधिशास्त्र भौतिक नियमों की बजाय विधि कि नियमों द्वारा शासित होने वाले मानवीय व्यवहारों से ही अधिक संबंध रखता है।
उल्लेखनीय है कि हॉलैंड द्वारा दिए गए विद शास्त्र की परिभाषा में प्रयुक्त का वास्तविक विधि का आशय सामण्ड की परिभाषा में प्रयुक्त सिविल विधि से बहुत कुछ मिलता मिलता है। वास्तविक विधि अभिप्राय सामाजिक संबंधों को विनियमित रखने वाले ऐसे कानूनों से है। जो राज्य द्वारा निर्मित होते हैं। तथा न्यायालयों द्वारा लागू किए जाते हैं। ऐसे नियमों को ही सामण्ड के व्यावहारिक विधि कहा जाता है।
हालैंड ने विधिशास्त्र को औपचारिक विज्ञान इसलिए कहा है, क्योंकि इस स्वास्थ्य में उस नियमों का अध्ययन समाविष्ट नहीं है। जो स्वयं आर्थिक संबंधों से उत्पन्न हुए हैं, अभी तो इसमें उन संबंधों का अध्ययन किया जाता है। जो वेधि नियमों द्वारा क्रमबद्ध रूप से संचालित किए जाते हैं। इस प्रकार यह विज्ञान भौतिक विज्ञान से भिन्न है।
पैन्टन के अनुसार विधिशास्त्र विधि अथवा विधि के विभिन्न प्रकारों का अध्ययन है। जबकि एलेन, ने विधिशास्त्र को विधि के मूलभूत सिद्धांतों का वैज्ञानिक विश्लेषण कहा है।
डायस और ह्याजस विधिशास्त्र को विधिक प्रशिक्षण एवं शिक्षा के रूप में स्वीकार किया है। इस दृष्टि से उन्होंने विधिशास्त्र में चार प्रमुख बातों का समावेश किया है।जो क्रमश इस प्रकार हैं-
1- विधि संबंधित संकल्पनाए
2- विधि की संकल्पना।
3- विधि के सामाजिक प्रयोजन तथा
4- विधि का उद्देश्य
प्रसिद्ध विधिशास्त्र ली का विचार है,कि विधिशास्त्र एक ऐसा विधान है, जो मौलिक सिद्धांतों को अनिश्चित करने का प्रयास करता है। तथा जिसकी अभिव्यक्ति विधि में पाई जाती है।
प्रोफेसर ग्रह के अनुसार विधिशास्त्र विधि का विज्ञान है जिसके अंतर्गत न्यायालय द्वारा लागू किए जाने वाले क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित नियमों और उनके सन्निहित सिद्धांतों का अध्ययन किया है।
प्रोफेसर ग्रीनलैंड द्वारा दी गई विधिशास्त्र की परिभाषा की आलोचना करते हुए उसे संकीर्ण तथा केवल सांकेतिक निरूपित किया है।उनका कथन है कि विधिशास्त्र केवल औपचारिक विज्ञान नहीं है। बल्कि यह एक पार्थिव विज्ञान भी है। अतः इसे वैद्य संबंधों और विधि नियमों का विज्ञान कहा जा सकता है।
ग्रे के अनुसार विधिशास्त्र विधि के विवेचन पर बल देता है, अतः इसके स्वाभाविक स्वरूप को प्रोफेसर हालैंड की परिभाषा तक सीमित रखना उचित नहीं है।
वीनोग्रैडआफ ने विधि के प्रति ऐतिहासिक दृष्टिकोण अपनाते हुए विधिशास्त्र की परिभाषा दी है,
उनके अनुसार विधिशास्त्र की उत्पत्ति विभिन्न राष्ट्रों के इतिहास में उनकी वास्तविक विधि में पाई जाने वाली विषमताओं से हुई है। जिसका उद्देश्य विधिक अधिनियम एवं न्यायिक निर्णयों के निहित सामान्य सिद्धांतों को खोज निकालना है।
समाजशास्त्रीय विधि शास्त्री के प्रेणाता डीन रास्को पाउंड ने विधिशास्त्र की परिभाषा देते हुए कहा है, (Jurisprudence Notes for LLM)
कि विधिशास्त्र विधि का ज्ञान है। यह विधि से तात्पर्य न्यायिक अर्थों में है, अर्थात विधिशास्त्र ऐसे सिद्धांतों का संकलन है, जो न्याय के स्थापना के लिए निर्मित किए गए हैं। और जिन्हें न्यायालयों द्वारा मान्य और लागू किया जाता है। रास्को पाउंड ने विधिशास्त्र के सामाजिक पहलू पर विशेष जोर दिया गया है। मानव जीवन में न्याय की अपनी महत्ता है। न्याय विहीन समाज में मनुष्य को जीवन निर्वाह करना कठिन हो जाएगा।
उपर्युक्त कथनों से यह स्पष्ट है, कि भिन्न भिन्न विधिवेत्ता ने विधि शास्त्र के अलग-अलग पहलुओं को लेकर उनकी व्याख्या की है। तथापि इन परिभाषाओं के विश्लेषण से दो निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं-
प्रथम यह है कि विधिशास्त्र की संकल्पना के विषय में विधिशास्त्र में मतभेद देते हुए भी प्रायः सभी ने यह स्वीकार किया है, कि विधिशास्त्र विधि का विज्ञान है। दूसरे सभी विधिशास्त्र यह स्वीकार करते हैं। कि विधि के मूलभूत संकल्पना ओं के अध्ययन को ही विधिशास्त्र कहना अधिक उपयुक्त होगा। तात्पर्य है, कि विधिशास्त्र विधि का केवल अध्ययन का ज्ञान मात्र नहीं है। बल्कि यह विधि का विज्ञान है।
किसी भी ज्ञान की शाखा को विज्ञान की कोटि में रखने के लिए यह आवश्यक होता है, कि उसे क्रमबद्ध और सुनियोजित ढंग से प्रस्तुत किया जाए।।
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