High Court Judgement on Maintenance- पत्नी नौकरी करती हो फिर भी बच्चो का भरण पोषण देना होगा

ये पोस्ट Delhi High Court Judgement के ऊपर है यह Court judgement मेंटेनेंस के ऊपर है | | Section 125, Child Maintenance Payment, Family law Child support मेंटेनेंस के बारे के में क्या कहती है  |

High Court Judgement on Maintenance पिछले दिनों दिल्ली हाई कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि अगर पति पत्नी में विवाद पैदा हो जाता है तो पति बच्चे का पालन पोषण उठाने से पीछे नहीं हट सकता । फिर चाहे पत्नि नौकरी ही क्यों ना करती हो । सेशन कोर्ट के फैसले को जस्टिस संजीव सचदेवा की पीठ के सामने चुनौती दी गई । लेकिन जस्टिस संजीव सचदेवा की पीठ ने इस अपील को खारिज कर दिया था । इस केस में याचिकाकर्ता एक  मुस्लिम है जिसने एक क्रिश्चियन लड़की से 2004 में निकाह किया था ।

निकाह के बाद अपनी शादी को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत उसने रजिस्टर भी कराया था । याचिकाकर्ता पति की उसकी पहली पत्नी से 2 बेटियां थी ।  और उसकी दूसरी पत्नी से भी दो बेटियां हुई । साल 2015 में पति-पत्नी के बीच मतभेद पैदा हुआ जिसके बाद दूसरी पत्नी अपनी दोनों बेटियों के साथ अलग हो गई । यही नहीं पति की पहली पत्नी से हुई एक नाबालिग बेटी को भी वह अपने साथ ले गई और उसकी देखभाल करने लगी ।

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याचिकाकर्ता पति पर घरेलू हिंसा के आरोप लगाए गए । पत्नी की याचिका पर सुनवाई करते हुए निचली अदालत ने पति को यह आदेश दिया कि अतिरिक्त गुजारे भत्ते की रकम के रूप में ₹60000 वह अपनी पत्नी को देगा । निचली अदालत ने देखा कि पति की मंथली इनकम ₹2,00,000 के लगभग थी ।

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निचली अदालत के इस फैसले के खिलाफ पति ने याचिका हाईकोर्ट में दाखिल की थी । जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था । हाई कोर्ट में याचिका कर्ता पति ने यह दलील दी थी कि उसके पास इनकम का कोई सोर्स नहीं है । इसलिए उसे अपनी पत्नी और नाबालिक बच्चों की जिम्मेदारी से आजाद कर दिया जाए ।

हाई कोर्ट ने सेशन कोर्ट और निचली कोर्ट के फैसले से ही सहमति जताई और कहा कि याचिकाकर्ता पति ने अपनी इनकम छुपाई है । और कोर्ट में झूठ बोला है । यह याचिकाकर्ता पति की कानूनी, सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वह अपनी पत्नी और नाबालिक बच्चों के लिए भरण-पोषण की जिम्मेदारी उठाएं । पति किसी भी हालत में अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकता चाहे पत्नी नौकरी ही क्यों ना करती हो ।

कोर्ट ने कहा कि एक मां जिस के पास बच्चों की कस्टडी है वह न सिर्फ उसके पालन-पोषण में पैसा खर्च करती है बल्कि उसको अपना कीमती वक्त भी देती है । और उनको बड़ा करने में मेहनत करती है । इसलिए एक मां के समय और मेहनत की कीमत नहीं लगाए जा सकती ।

हाई कोर्ट ने मनमोहन सिंह वर्सेस मीना केस में दिए गए फैसले का हवाला देते हुए कहा कि अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए ऐसी स्थिति पैदा नहीं की जा सकती जहां पत्नी को भाग्य के भरोसे रह कर जिंदा रहना पड़े । इसलिए कोर्ट ने यह माना कि याचिकाकर्ता को गुजारा भत्ता देना ही पड़ेगा । भले ही पत्नी के पास आय का साधन हो । (High Court Judgement on Maintenance)

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निचली अदालत ने जो ₹60,000 का मेंटेनेंस तय किया है वह तीनों लड़कियों पर होने वाले खर्च से बहुत कम है । तीनों बेटियों के पालन पोषण में बाकी सभी खर्चे पत्नी ही उठा रही है इस आधार पर याचिकाकर्ता बच्चों का गुजारा भत्ता उठाने से नहीं बच सकता की पत्नी नौकरी करती है । (High Court Judgement on Maintenance)

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