Supreme Court Judgement On IPC 306 | वैश्या कहने पर आईपीसी 306 का मामला नही बनेगा

सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट के उस आदेश को सही ठहराया है, जिसमें एक लड़की को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में आरोपी को बरी कर दिया गया था। आरोप लगाए गए थे कि आरोपी लड़के और मृतक लड़की के बीच प्रेम संबंध थे।

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जब वे एक-दूसरे से शादी करने के अपने फैसले के बारे में आरोपी के माता-पिता को बताने के लिए आरोपी के घर गए तो उसके माता-पिता (अन्य आरोपी) ने इसे मंजूरी देने से इनकार कर दिया और लड़की पर चिल्लाते हुए उसे ‘कॉल गर्ल’ कह दिया। इस घटना के अगले दिन लड़की ने अपने प्रेमी पर आरोप लगाते हुए ठहराते हुए दो सुसाइड नोट लिखे और आत्महत्या कर ली। उसने सुसाइड नोट में यह भी लिखा था कि आरोपी कायर है और जब उसके माता-पिता ने उसे अपमानित किया तो वह कुछ भी नहीं बोल पाया।

It is not Necessary for the Witnesses to Know What is Written in the Sale Deed/Will || गवाहों के लिए यह जरूरी नहीं है कि उन्हें पता हो कि दस्तावेजों में क्या लिखा है

आरोपी की तरफ से एक अर्जी दायर कर उसे आरोप मुक्त करने की मांग की गई थी, परंतु ट्रायल कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया। हाईकोर्ट का फैसला हाईकोर्ट ने आरोपी द्वारा दायर याचिका को स्वीकार कर लिया था और कहा था कि मृतक को कॉल-गर्ल कहा गया था लेकिन कोई ऐसी कोई बात नहीं कही गई थी जिसको आत्महत्या करने के लिए मृतक को उकसाने, भड़काने या अपमानित करने का कार्य समझा जा सके।

‘स्वामी प्रहलाद दास बनाम एम.पी राज्य’मामले में दिए गए फैसले का हाईकोर्ट ने हवाला दिया था, जिसमें कहा गया था कि ”जाओ और मरो जैसे समान कथनों या बातों से उकसाने के अपराध का गठन नहीं होता है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला अपील पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस दृष्टिकोण के साथ सहमति व्यक्त की और कहा कि इस मामले में, पीड़ित द्वारा आत्महत्या करने के लिए किसी भी प्रतिवादी द्वारा उसे भड़काने या उकसाने का कार्य नहीं किया गया था।

It is not Necessary for the Witnesses to Know What is Written in the Sale Deed/Will || गवाहों के लिए यह जरूरी नहीं है कि उन्हें पता हो कि दस्तावेजों में क्या लिखा है

न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा और न्यायमूर्ति आर.सुभाष रेड्डी की खंडपीठ ने कहा कि- “हमारा यह भी मानना है कि वर्तमान मामला कोई ऐसी तस्वीर पेश नहीं करता है, जिसमें प्रतिवादियों द्वारा कथित रूप से उकसाने का कोई काम किया गया हो। पीड़िता द्वारा की गई आत्महत्या को प्रतिवादियों की ओर से की गई किसी भी कार्रवाई का परिणाम नहीं कहा जा सकता है और न ही यह कहा जा सकता है कि प्रतिवादियों की कार्रवाई के कारण, पीड़िता के पास एकमात्र आत्महत्या करने का उपाय ही बचा था।

पीड़िता को आत्महत्या करने के लिए किसी भी प्रतिवादी द्वारा न तो उकसाया गया, न भड़काया गया और न ही ऐसा करने के लिए कहा गया।” पीठ ने ‘रमेश कुमार बनाम छत्तीसगढ़ राज्य’ मामले में दिए गए के फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें अदालत ने धारा 306 के दायरे और उन सामग्रियों और तथ्यों पर विचार किया था, जो उकसाने के लिए अनिवार्य हैं और जिनका आईपीसी की धारा 107 में उल्लेख किया गया है।

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पीठ ने इस फैसले की निम्नलिखित टिप्पणियों का हवाला भी दिया,जो इस प्रकार हैं- ” ‘एक कृत्य या काम’ को करने के लिए उकसाना, आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना, भड़काना या उत्तेजित करना। हालांकि, उकसाने या शह देने की अनिवार्यता को पूरा करने के लिए, यह जरूरी है कि वास्तविक शब्दों का प्रयोग उस प्रभाव के लिए किया गया हो या उन शब्दों से उकसाने या शह देने का गठन जरूर होता हो और विशेष रूप से परिणाम का विचारोत्तेजक होना चाहिए। हालांकि फिर भी उकसाने के परिणामों को बताने के लिए उचित निश्चितता ऐसा करने में सक्षम होनी चाहिए।

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वर्तमान मामला एक ऐसा मामला नहीं है जहां अभियुक्त ने अपने कृत्यों या चूक से या अपने आचरण से निरंतर ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न की हों कि मृतक के पास आत्महत्या करने के सिवाय, कोई विकल्प ही नहीं बचा था। अगर ऐसा होता हो तो उसे उकसाने का मामला माना जा सकता था। गुस्से या भावनाओं में बहकर कोई शब्द या बात कह देना, वास्तव में जिसके परिणामों का अनुमान न लगाया गया हो ,उससे उकसाने का मामला नहीं बनता है।”




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