Gratuity Act Applies only when there are Options for the Employee Under the Act under Contract with Employer

Gratuity Act Applies only when there are Options for the Employee Under the Act under Contract with Employer

 

ग्रेच्युटी कानून के क्षेत्र में एक उल्लेखनीय निर्णय देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पेमेंट ऑफ ग्रेच्युटी एक्ट, 1972 की धारा 4 (5) तभी लागू होगी, जब कानून के तहत कर्मचारी के लिए विकल्प हो और अनुबंध की शर्तों के तहत कर्मचारी के साथ हो। कोर्ट ने कहा कि कर्मचारी किसी भी पैकेज को पूरा ले और दोनों विकल्पों के तहत शर्तों का ‘समुच्‍चय’ नहीं हो सकता।

 

सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पाण‌ियां बीसीएच इलेक्ट्रिक लिमिटेड बनाम प्रदीप मेहरा के मामले में की है, जस्टिस यूयू ललित और संजीव खन्ना की खंडपीठ ने क्‍लेम कमिश्नर के उन निष्कर्षों को रद्द कर दिया, जिसे अपीलीय प्राधिकरण और दिल्ली हाईकोर्ट की सिंगल और डिवीजन दोनों ने बेंच मंजूरी दे चुकी थीं। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मुद्दा यह था कि क्या कर्मचारी प्रदीप मेहरा को 1979 में कंपनी द्वारा बनाई गई ग्रेच्युटी योजना के तहत या अध‌िनियम की शर्तों के तहत कवर किया गया था।

 

1979 में कंपनी ने उन कर्मचारियों के लिए एक ग्रेच्युटी योजना तैयार की थी, जो अधिनियम के तहत कवर नहीं किए गए थे। 2012 में, कर्मचारी ने 12 साल की नौकरी के बाद कंपनी से इस्तीफा दे दिया था और 1,83,75000 / – रु की ग्रेच्युटी क्लेम की थी। कंपनी का कहना था कि अधिनियम की धारा 4 (3) के तहत निर्धारित ऊपरी सीमा के अनुसार, वह केवल 10 लाख रुपये की ग्रेच्युटी के हकदार हैं। यह मानते हुए कि कंपनी की ग्रेच्युटी योजना की कोई ऊपरी सीमा नहीं है, कर्मचारी ने क्लेम कमिश्नर से संपर्क किया। क्लेम कमिश्नर ने ग्रेच्युटी अधिनियम की धारा 4 (5) का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है: ‘इस खंड के तहत कुछ भी नियोक्ता के साथ किसी भी पुरस्कार या समझौते या अनुबंध के तहत ग्रेच्युटी की बेहतर शर्तों को प्राप्त करने के लिए किसी कर्मचारी के अधिकार को प्रभावित नहीं करेगा’।

 

इसके आधार पर, क्लेम कमिश्नर ने फैसला दिया कि कर्मचारी कंपनी की योजना के अधिक लाभकारी नियमों का हकदार है, जिसकी कोई ऊपरी सीमा नहीं है। जिसके बाद कंपनी मामले को अपीलीय प्राधिकरण में ले गई, और फिर दिल्‍ली हाईकोर्ट में अपील की। हालांकि किसी ने भी क्लेम कमिश्नर के फैसले का नहीं बदला। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील में, सीनियर एडवोकेट सीयू सिंह ने कहा कि कंपनी की ग्रेच्युटी योजना उन कर्मचारियों के लिए थी जो 1979 के वेज-ब्रैकेट के अनुसार अधिनियम के दायरे में नहीं आते थे। चूंकि उत्तरदाता अधिनियम के तहत कवर था, इसलिए उस पर कंपनी की योजना को लागू करने की गुंजाइश नहीं थी। इसलिए अधिनियम की धारा 4 (3) के तहत ऊपरी सीमा उस पर लागू होगी।

 

आगे दलील दी गई कि बीड डिस्ट्रिक्ट सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंक लिमिटेड बनाम महाराष्ट्र राज्य (2006) 8 SCC 514 और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया और अन्य बनाम सीजी अजय बाबू और अन्य (2018) 9 एससीसी 529 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून के संदर्भ में या तो वैधानिक प्रावधान या अनुबंध योजना का पालन किया जा सकता है, दोनों तत्वों का समुच्चय नहीं।

 

जवाब में, प्रतिवादी की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट जेपी कामा ने कहा कि चूंकि अधिनियम की धारा 4 (5) अधिनियम के अन्य प्रावधानों पर प्रभावकारी है, इसलिए, प्रतिवादी को बस यह दिखाना आवश्यक थी कि अपीलकर्ता के पास अपने कर्मचारियों (अनुबंध) के लिए एक योजना थी और इसकी सीमा निर्धारित नहीं थी और यह योजना अधिनियम की धारा 4 (5) द्वारा संरक्षित थी। अदालत ने कहा कि यह योजना उन कर्मचारियों पर लागू नहीं थी, जो प्रतिवादी के वेतन वर्ग में शामिल थे।




पीठ ने कहा,

 

‘ट्रस्ट डीड और योजना को वर्ष 1979 में कार्यान्वित किया गया, जब अधिनियम के तहत कवर करने के लिए वेज-ब्रैकेट एक कर्मचारी के लिए निश्चित पैरामीटर था। ट्रस्ट डीड और योजना के इरादे को उस परिप्रेक्ष्य में समझना होगा।” इसलिए, यह ऐसा मामला नहीं था, जहां कर्मचारी के पास अनुबंध योजना और वैधानिक योजना के विकल्प थे, क्योंकि प्रतिवादी को कंपनी की योजना के तहत कवर नहीं किया गया था। ‘… धारा 4 (5) के आवेदन के लिए दो विकल्प होने चाहिए, एक अधिनियम के संदर्भ में और एक पुरस्कार या नियोक्ता के साथ अनुबंध या अनुबंध के अनुसार।’ बीड डिस्ट्रिक्ट सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंक लिमिटेड के मामले का जिक्र करते हुए, पीठ ने कहा कि एक कर्मचारी नियोक्ता की योजना और अधिनियम के तहत योजना का समुच्चय नहीं चुन सकता है। कोर्ट ने कहा, ‘न्यायालय ने निर्धारित किया है कि एक कर्मचारी को नियोक्ता द्वारा दिए गए पूरे पैकेज को लेना चाहिए या जो अधिनियम के तहत उपलब्ध है, उसे लेना चाहिए।

 

वह नियोक्ता की योजना के कुछ शर्तों अधिनियम की शर्तों का समुच्‍चय का लाभ नहीं पा सकता है।’ सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसला में कहा कि हाईकोर्ट ने क्लेम कमिश्नर के निर्देशों को बरकरार रखकर गलती की है। कंपनी को प्रतिवादी के खिलाफ धारा 4 (3) के तहत ऊपरी-सीमा लागू करने का हकदार माना गया।




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