विवाह संबंधी मामलों में स्थानांतरण याचिकाओं पर विचार करते वक्त पति के बजाय पत्नी की सुविधा को तरजीह दी जानी चाहिए : केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने सोमवार को जारी एक आदेश में कहा कि विवाह संबंधी वादों में स्थानांतरण याचिकाओं पर विचार करते वक्त पति की सुविधा के बजाय पत्नी की सुविधा को अधिक तरजीह दी जानी चाहिए। कोर्ट ने यह टिप्पणी एक पत्नी की ओर से दायर स्थानांतरण याचिका स्वीकार करते हुए की।
महिला के पति ने पाथनमथिट्टा की परिवार अदालत में तलाक को लेकर याचिका दायर कर रखी थी। महिला ने तलाक के इस मामले को तिरुवनंतपुरम की परिवार अदालत में स्थानांतरित करने का अनुरोध किया था।
Dowry Seystem – दहेज प्रथा से आप क्या समझते हैं? इस समस्या के समाधान करने के सुझाव
महिला की दलील थी कि उसके पास आय का कोई साधन नहीं है और जीवनयापन के लिए वह अपने बूढ़े पिता पर आश्रित है। उसने कहा था कि पाथनमथिट्टा में अदालत की कार्यवाही में हिस्सा लेने के लिए उसके साथ आने-जाने वाला भी कोई नहीं है और इसलिए उसे तिरुवनंतपुरम में अदालती कार्यवाही में हिस्सा लेने में सुविधा होगी, क्योंकि वह वहीं रहती है।
कोर्ट ने कहा कि चूंकि महिला के पति को नोटिस जारी करके मामले में पेश होने के लिए कहा गया था लेकिन वह पेश नहीं हुआ, इसलिए इसे इस रूप में लिया जाना चाहिए कि पति को तिरुवनंतपुरम की परिवार अदालत में मुकदमा स्थानांतरित किये जाने को लेकर कोई आपत्ति नहीं है। न्यायमूर्ति शिर्सी वी. ने इस मामले में कुछ समय पहले के फैसलों का उल्लेख करते हुए कहा, “यह पूरी तरह से तय है कि वैवाहिक मुकदमों में स्थानांतरण याचिकाओं पर विचार करते वक्त पति की सुविधा के बजाय पत्नी की सुविधा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।”
Also Read – Supreme Court Judgement – किसी कर्मचारी के खिलाफ विभागीय या अनुशासनात्मक कार्यवाही निजी सूचना है क्या नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने ‘सुमिता सिंह बनाम कुमार संजय [2000 केएचसी 1989]’ मामले में एक महिला द्वारा दायर स्थानांतरण याचिका को यह कहते हुए मंजूर कर लिया था : “यह पत्नी के खिलाफ पति का वाद है। इसलिए पत्नी की सुविधा का ख्याल रखा जाना चाहिए।” कोर्ट ने कहा कि ऊपर वर्णित परिस्थितियां इस स्थानांतरण याचिका को मंजूर करने के लिए पर्याप्त आधार प्रदान करती हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने ‘रजनी किशोर परदेशी बनाम किशोर बाबूलाल परदेशी [(2005) 12 एससीसी 237]’ मामले में भी इसी तरह की टिप्पणी की थी।
आंध्र प्रदेश कोर्ट ने भी ‘शैलजा वी. वी. बनाम कोटेश्वर राव [2003 केएचसी 3105]’ मामले में सुप्रीम कोर्ट के उपरोक्त फैसले का संज्ञान लेते हुए कहा था कि विवाह संबंधी मुकदमों के स्थानांतरण के मामले में अदालतों को पत्नी की सुविधा का विशेष ध्यान देना चाहिए।
केस का नाम : रेशमी राधाकृष्ण बनाम शिजू एलेक्स वर्गीज़
केस नं. : स्थानांतरण याचिका (सिविल) संख्या 296/2020
कोरम : न्यायमूर्ति शिर्सी वी.
वकील : एडवोकेट शिबी के. पी.
पुलिस शिकायत (Police Complaint) दर्ज करते समय महत्वपूर्ण शर्ते ?
Indian Penal Code (IPC) Section 306 in Hindi || आई.पी.सी.की धारा 306 में क्या अपराध होता है?
John Austin’s Theory of Jurisprudence | जॉन ऑस्टिन का विधिशास्त्र का सिद्धांत बताये
80D, 80DD, 80DDB, 80U के तहत चिकित्सा व्यय के माध्यम से आयकर कैसे बचाएं
0 Comments