फैक्टम वालेट का सिद्धांत क्या कहता है
फैक्टम वैलेट का सिद्धान्त (Doctrine of Factum Valet) -इस सिद्धान्त के अनुसार कोई भी अनियमित रूप से सम्पन्न विवाह जो हिन्दू धर्मशास्त्र के निर्देश के विपरीत किया गया है, वैध मान लिया जाता है। हिन्दू विधि की ‘दायभाग’ तथा ‘मिताक्षरा’ शाखा ने भी इस सिद्धान्त को मान्य किया है। आज भी इस सिद्धान्त को हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 29 (1) के अन्तर्गत एक बचाव के रूप में उपबन्धित किया गया है।
इस धारा के अनुसार, (फैक्टम वैलेट का सिद्धान्त)
“इस अधिनियम के प्रारम्भ के पूर्व हिन्दुओं में अनुष्ठित ऐसा विवाह जो अन्यथा विधिामान्य हो, केवल इस तथ्य के कारण अविधिमान्य या कभी अविधिमान्य रहा हुआ न समझा जायेगा कि उसके पक्षकार एक ही जोग या प्रचर के थे अथवा विभिन्न धर्मों, जातियों या एक ही जाति की विभिन्न उपजातियों के थे।”
इस प्रकार यह सिद्धान्त सौतेली बहिन, चरचेरी बहिन, साली अथवा साली की लड़की के साथ सम्पन्न विवाह को मान्य बनाने के लिए स्वीकार किया गया है।
फैक्टम वैलेट के सिद्धान्त का तात्पर्य है कि घटना या सत्य को एक सौ प्रमाणिक लेखों द्वारा भी परिवर्तित नहीं किया जा सकता है।” (A fact cannot be altered by a hundred texts)। अर्थात् जब कोई कार्य किया जाता है और उसकी पूर्ति हो जाती है तो भले ही वह नैतिक धारणाओं के विपरीत क्यों न हो उसको विधिक को दृष्टि से बन्धनकारी माना जायेगा यदि सम्बन्धित ग्रन्थों के पाठ निदेशात्मक हैं। परन्तु जहाँ विवाह बल अथवा कपट द्वारा सम्पादित किया गया है वहाँ विवाह शून्य घोषित किया जायेगा। वहाँ यह सिद्धान्त अनुवर्तनीय नहीं होगा।
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