क्या बॉडी का पिछला हिस्सा भी प्राइवेट पार्ट है मुंबई पॉक्सो कोर्ट जजमेंट

क्या बॉडी का पिछला हिस्सा भी प्राइवेट पार्ट है  मुंबई पॉक्सो कोर्ट जजमेंट

 

क्या बॉडी का पिछला हिस्सा भी प्राइवेट पार्ट है  मुंबई पॉक्सो कोर्ट ने दीया बात हो रही है के स्टेट ऑफ महाराष्ट्र बनाम शहर अलीशा केस केस ले देकर इस केस का सबसे बड़ा बहस का मुद्दा यह था कि क्या किसी के हिप्स प्राइवेट पार्ट है या नहीं। 

 

क्या था मामला 

 

पृष्ठभूमि यह अभियोजन पक्ष का मामला था कि जब पीड़िता और उसकी दोस्त मंदिर की ओर जा रहे थे, तो पास में बैठे चार लड़कों के एक समूह में से काली टी-शर्ट पहने एक लड़का उसके पास पहुँचा और उसके प्राइवेट पार्ट को छुआ। यह आरोप लगाया गया था कि इस घटना के बाद, सभी लड़के हंसने लगे और पीड़िता वापस अपने घर चली गई।

यह दावा किया गया कि पीड़िता ने अपनी मां को घटना सुनाई, जिसने बाद पीड़िता के पिता को फोन किया गया और उसे बताया कि किसी ने उसकी बेटी को छेड़ा है। इसके बाद, पिता घर वापस आए और पीड़िता को उस स्थान पर ले गए जहां उसने काली टी-शर्ट पहने लड़के की तरफ इंगित किया था। इसके बाद, आईपीसी की धारा 354 (महिला को अपमानित करने के इरादे से हमला करना या आपराधिक बल) और 354ए (यौन उत्पीड़न) और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012, (पाॅक्सो ) अधिनियम की धारा 10 (यौन हमला) के तहत किए गए अपराध के संबंध में एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी। जिसके बाद अगले दिन 22 साल के आरोपी को गिरफ्तार किया गया था।


बम्स को छूना केवल छेड़खानी नहीं

 

अदालत ने आरोपी के इस तर्क को खारिज कर दिया कि कथित मामला केवल छेड़खानी की घटना थी। कोर्ट ने माना कि, ”अपनी भाषा में पीड़िता ने अपने माता-पिता से और पुलिस के समक्ष बताया था कि आरोपी ने उसके प्राइवेट पार्ट को छुआ था। प्रासंगिक समय में, वह मुश्किल से 10 साल की थी। इसलिए उसने अपनी भाषा में उस व्यवहार को व्यक्त किया। इसलिए कोई भ्रम नहीं हो सकता कि न केवल उसके साथ छेड़खानी हुई थी,बल्कि आरोपी ने उसे अनुचित तरीके से छुआ था।

 

” जहां तक पीड़िता के माता-पिता के बीच फोन पर हुई बातचीत का संदर्भ है, जहां उसकी मां ने कहा था कि किसी ने उनकी बेटी को ”छेड़ा” है,

 

कोर्ट ने कहा,

 

”फोन काॅल प्राप्त होते ही पिता का तुरंत दौड़कर घर आना,यह दर्शाता है कि उनकी बेटी के साथ छेड़खानी से ज्यादा गंभीर कुछ हुआ था। यह टेलीफोन पर बातचीत थी, इसलिए यह स्वाभाविक है कि पत्नी ने विवरण देने के बजाय फोन पर बस यही कहा कि, उनका बेटी को किसी ने छेड़ा है। फोन पर विवरण देने से बचने का मतलब यह नहीं है कि बेटी को सिर्फ छेड़ा गया है और उसे छुआ नहीं गया था।”

 

जांच की निर्बलताओं की कीमत का भुगतान पीड़िता क्यों करें? अभियुक्त ने अभियोजन पक्ष के मामले को यह कहकर टालने का प्रयास किया था कि (1) न तो उसके दोस्तों और न ही पीड़िता की दोस्त से पूछताछ की गई थी (2) कोई निर्णायक सबूत नहीं था कि यह वही लड़का था जिसने पीड़ित के बम्स को छुआ था। कोर्ट ने माना कि अन्य चश्मदीद गवाहों से पूछताछ न करना मामले के लिए घातक नहीं होगा। जहां तक पीड़िता की दोस्त का संबंध है, न्यायालय ने कहा कि, ”बहुत कम लोग इस तरह की घटना में शामिल होना पसंद करते हैं, भले ही घटना उन्होंने देखी हो। इसलिए केवल, इस कारण से कि इस घटना का कोई चश्मदीद गवाह नहीं हैं और जो दोस्त पीड़िता के साथ थी,उसकी गवाही नहीं करवाई गई, पीड़िता के बयान को नकारने का कारण नहीं बन सकते हैं।”

 

आरोपी के दोस्तों के संबंध में अदालत ने कहा, ”यह मामला नहीं है कि चार लड़कों में से किसी ने भी पीड़िता को छेड़ा नहीं था और न ही उसे अनुचित तरीके से छुआ था। एक लड़के ने निश्चित रूप से उसे अनुचित तरीके से छुआ था। सवाल यह है कि उक्त लड़का कौन था? अगर उक्त लड़का आरोपी के अलावा अन्य था तो आरोपी को अपने उस दोस्त का नाम अदालत के समक्ष बताना होगा जो घटना की तारीख पर उसके साथ था और उसने पीड़ित को अनुचित तरीके से छुआ था।” अंत में, अदालत ने कहा कि वह इस बात से संतुष्ट है कि यह आरोपी ही है जिसने पीड़िता को अनुचित तरीके से छुआ था। कोर्ट ने कहा कि,

 

”पीड़िता के अनुसार, उक्त विशेष लड़का काली टी-शर्ट पहने हुए था। पीड़िता ने अपने पिता के सामने विशेष रूप से काली टी-शर्ट पहने हुए लड़के की तरफ इशारा किया था। यह रिकॉर्ड की बात है कि पुलिस ने आरोपी से उक्त काली टी-शर्ट को बरामद नहीं किया ताकि अपनी पहचान की पुष्टि की जा सकें। मेरे लिए, यह पुलिस की जांच में कमी है और निर्दोष पीड़िता इसकी लागत का भुगतान नहीं करेगी। जैसे ही आरोपी को अगले दिन गिरफ्तार किया गया और उसे पीड़िता के पिता को दिखाया गया, उस समय आरोपी ने वहीं काले रंग की टी-शर्ट पहन रखी थी जो उसने घटना की तारीख पर पहनी थी।

 

इसलिए अदालत के लिए आरोपी की पहचान उचित संदेह से परे स्थापित हो गई है।” उपरोक्त के मद्देनजर, आरोपी को पाॅक्सो अधिनियम और आईपीसी के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत एक महिला के यौन उत्पीड़न और उसकी शालीनता भंग करने के लिए दोषी ठहराया गया और उसे पांच साल के कठोर कारावास की सजा दी गई। केस का शीर्षकः स्टेट ऑफ महाराष्ट्र बनाम सहर अली शेख


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