Liabilities of a Surety - भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 128 के अन्तर्गत प्रतिभू के दायित्वों का वर्णन कीजिये

भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 128 के अन्तर्गत प्रतिभू के दायित्वों का वर्णन कीजिये | Discuss the liabilities of a surety under section 128 of the Indian Contract Act.


प्रतिभू के दायित्व (Liabilities of a Surety) :- विधि में प्रतिभू की स्थिति को मूल ऋणी की स्थिति के समान माना जाता है | अतः साधारण रूप में यह कहा जा सकता है कि प्रतिभू का उत्तरदायित्व वही है जो कि मूल ऋणी का परन्तु संविदा द्वारा इस प्रकार उत्तरदायित्व में परिवर्तन किया जा सकता है ।

 

भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 128 के अनुसार- प्रतिभू का दायित्व (Liabilities of a Surety) जब तक संविदा द्वारा अन्यथा उपबन्धित न हो, मुख्य ऋणी के दायित्व के समान विस्तृत है ।

उदाहरण-

क एक विनिमयपत्र के प्रतिग्रहीता ग द्वारा देनगी की ख को प्रत्याभूति देता है। वह पत्र ग द्वारा अनादृत किया जाता है। क न केवल विनिमय पत्र की रकम के लिए बल्कि किसी ब्याज या प्रभारों के लिए भी जो कि उन पर शोध्य हो गये हों, दायी है।

 

संविदा अधिनियम की धारा 128 – Section 128 of the Contract Act

 

यह उपबन्धित करती है कि प्रतिभू का दायित्व (Liabilities of a Surety) मुख्य ऋणी के दायित्व का सहभागी होता है जब तक कि अन्यथा व्यवस्था न की गयी हो। इस प्रकार जहाँ प्रतिभू सम्पूर्ण ऋण का दायित्व स्वीकार करता है तो उसे ऋणी के सम्पूर्ण कर्ज के लिए उत्तरदायी बनाया जा सकता है। नारायण सिंह बनाम छतर सिंह (A.I.R. 1973, Raj 347) के वाद में उच्च न्यायालय ने कहा कि धारा 128 से यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रतिभू का उत्तरदायित्व (Liabilities of a Surety) मुख्य ऋणी के सग-विस्तीर्ण होता है तथा यदि मुख्य ऋणी के उत्तरदायित्व को संशोधित कर दिया जाय या आंशिक या पूर्ण रूप से समाप्त कर दिया जाये तो प्रतिभू का उत्तरदायित्व भी उसी प्रकार कम अथवा समाप्त हो जायेगा।

 

बिहार बैंक लिमिटेड बनाम डॉ० दामोदर प्रसाद, (A.I.R. 1969 S.C. 297) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह धृत किया कि प्रतिभू का दायित्व (Liabilities of a Surety) तुरन्त (Immediate) होता है, तथा उस समय तक के लिए हटाया नहीं जा सकता है जब तक कि ऋणदाता ऋणों के विरुद्ध प्राप्त समस्त प्रतिकारों को समाप्त न कर ले।

 

महाराष्ट्र राज्य विद्युत बोर्ड बनाम शासकीय समापक, उच्च न्यायालय एर्नाकुलम और अन्य (उच्च न्यायालय निर्णय पत्रिका 1983) में प्रदाय करने वाली कम्पनी ने अपीलार्थी, महाराष्ट्र राज्य विद्युत बोर्ड के पक्ष में प्रतिभूति-निक्षेप के बदले 50,000 रुपये की बैंक गारण्टी दी। यह गारण्टी प्रदाय करने के सम्बन्ध में अपेक्षित थी। उस गारण्टी द्वारा बैंक ने असंदिग्ध रूप से और किसी शर्त के बिना इस बात के लिए करार किया था कि वह बोर्ड से माँग किये जाने के 48 घण्टे के भीतर गारण्टीकृत रकम का भुगतान संसदीय बोर्ड को कर देगा। उक्त गारण्टी देने के लिए बैंक ने कम्पनी के कतिपय नियम निक्षेप और जस्ते की कुछ सिल्लियाँ प्रतिभूति के तौर पर प्राप्त किये थे। इसके अलावा उन प्रतिभूतियों के सम्बन्ध में कुछ अधिकार भी थे।

कुछ दिनों के बाद बोर्ड ने बैंक से 50,000 रुपये की गारण्टीकृत रकम देने की माँग की। इसी बीच उच्च न्यायालय के आदेशानुसार वह कम्पनी समापना लीन हो गयी और शासकीय समापक ने उसका कार्यभार संभाला। बैंक ने समापक को कम्पनी के दायित्व के बारे में लिखा।

अभिवचन क्या है | अभिवचन के उद्देश्य क्या हैं

तदुपरान्त, समापक ने कम्पनी (न्यायालय) के नियम 9 के साथ पठित कम्पनी अधिनियम,1956 की धारा 456(2), के अधीन आवेदन फाइल करते हुए यह प्रार्थना की कि गारण्टीकृत रकम की वसूली करने से बोर्ड को अवरुद्ध करते हुए इस आधार पर आदेश दिये जायें कि परिसमापन को देखते हुए, बोर्ड बैंक से गारण्टीकृत रकम का दावा नहीं कर सकता । कम्पनी न्यायालय ने आवेदन स्वीकार कर लिया तथा उच्च न्यायालय के अधीन होने पर वह भी खारिज कर दी गयी। उच्च न्यायालय के उसी आदेश के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में विशेष इजाजत लेकर अपनी फाइल की गयी। उच्चतम न्यायालय ने अपील मन्जूर करते हुए अपने निर्णय में कहा कि, “कम्पनी न्यायालय गारण्टीकृत रकम की वसूली करने से लेनदार को अवरुद्ध नहीं कर सकती है।

 

प्रतिभू का उत्तरदायित्व जब मूल संविदा शून्य हो (Liability of Surety when original contract is void)

 

यह धारा केवल प्रतिभू के उत्तरदायित्व की मात्रा (quantum) का वर्णन करती है जहाँ कि संविदा में उसकी कोई सीमा नहीं है। एक प्रतिभू इस दशा में अपने दायित्व से उन्मुक्त नहीं हो सकता कि मुख्य ऋणी ऋण की अदायगी के लिए दायित्वाधीन नहीं है। अतः प्रतिभू
को इस आधार पर भी उसके दायित्व से उन्मुक्त नहीं किया जा सकता कि मुख्य ऋणी तथा ऋणदाता के मध्य संविदा शून्य थी तथा जहाँ अवयस्क के मामले में मूल संविदा शून्य है, वहाँ प्रतिभू ऋणदाता के प्रति उत्तरदायी होगा।

क्षतिपूर्ति संविदा की परिभाषा दीजिये तथा इसके आवश्यक तत्वों का वर्णन कीजिये

यदि कोई व्यक्ति अवयस्क की ओवरड्राफ्ट (overdraft) द्वारा भुगतान की प्रत्याभूति करता है तो वह उत्तरदायी होगा, यदि अवयस्कता का तथ्य दोनों पक्षकारों को मालूम है न्यायाधीश फरान (Farran) ने कहा कि अवयस्क को ऋण देना अवैध, अनैतिक या अनुचित नहीं है और जब तक यह विधि विरुद्ध न हो, कोई कारण नहीं है कि एक व्यक्ति अपूर्ण उत्तरदायित्व की प्रत्याभूति के लिए संविदा न कर सके । अतः यदि क्षतिपूर्ति की संविदा है तो प्रतिभू शून्य संविदा या ऋण के लिए उत्तरदायी होगा परन्तु यदि संविदा प्रत्याभूति की है तो वह उत्तरदायी नहीं होगा।

 

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