सम्पत्ति अन्तरण (संशोधन) अधिनियम 1929 – किन परिस्थितियों में कब्जा सूचना समझा जाता है – Under what circumstances the possession can Amount to Notice
सूचना का सिद्धांत धारा 3 के अनुसार कोई व्यक्ति किसी तथ्य की सूचना प्राप्त किए हुए कहलाता है जबकि वह उस तथ्य को वास्तव में जान ले या जब किसी छानबीन के द्वारा जो उसको करनी चाहिये थी जान बूझकर दूर रहने पर या पूर्ण उपेक्षा के अतिरिक्त वह उसको जान लेता है। इस प्रकार किसी व्यक्ति को तथ्य की सूचना उस समय मानी जाती है जब उसे या तो स्वयं वास्तविक सूचना हो या तो प्रलक्षित सूचना हो या ऐसी सूचना भी हो सकती है जब उसके बारे में यह समझा जाये कि तथ्य की सूचना उसके एजेन्ट द्वारा उसकी ओर से संव्यवहार करते समय प्राप्त कर ली गई थी।
सूचना की उक्त परिभाषा के अन्तर्गत वास्तविक तथा प्रलक्षित दोनों प्रकार की सूचनायें शामिल हैं।
अतः सूचनाओं को दो भागों में बांटा जा सकता है :- Information can be divided into two parts
1. वास्तविक सूचना 2. प्रलक्षित सूचना
1. वास्तविक सूचना (Actual Notice):
वास्तविक सूचना से अभिप्राय ऐसी सूचना से होता है जिसके द्वारा व्यक्ति को तथ्य की वास्तविक सूचना प्राप्त होती है। वास्तविक सूचना को बाध्यकारी होने के लिए यह अनिवार्य है कि ऐसी सूचना उसे वस्तु में हितबद्ध व्यक्ति द्वारा दी गई हों। लायड बनाम oSIZL.R3 Ch.488 में यह निर्धारित किया गया था कि सूचना का लांछन लगाने वाले पक्ष को यह सिद्ध करना चाहिये कि दूसरे पक्ष को ऐसी जानकारी है जो एक विवेकशील या व्यवसायिक व्यक्ति के मस्तिष्क में काम करेगी और उसके विषय में वह कार्य करायेगी, जिनका उसे ज्ञान था। इस प्रकार एक मान्य वास्तविक सूचना के लिए निम्नलिखित बातों का पूरा होना आवश्यक है।
1. दोनों पक्षों को निश्चित सूचना होनी चाहिए। सूचना हमेशा सत्य और स्पष्ट होनी चाहिए। अफवाह सूचना की श्रेणी में नहीं आती।
2. सूचना सम्पत्ति में हित रखने वाले व्यक्ति द्वारा ही दी जानी चाहिये किसी अपरिचित द्वारा नहीं।
3. सूचना उसी संबंधित संव्यवहार (Transaction) के बारे में दी जानी चाहिये किसी अन्य के बारे में नहीं।
उदाहरणार्थ-क अपनी भूमि को ख को 5 हजार रू. में बेचने का संविदा करता है। ख भूमि को कब्जे में ले लेता है। उसके बाद उस भूमि को क, ग के नाम 6 हजार रू. में बेच देता है। ग, ख के उस भूमि में निहित हित की जांच नहीं करता। उस भूमि का ख के कब्जे में होना इस बात के लिए पर्याप्त आधार है कि ग को उस भूमि में ख के हित की सूचना प्राप्त है ख, ग के खिलाफ विशिष्ट पालन की कार्यवाही कर सकता है।
2. प्रलक्षित सूचना (Constructive Notice)
प्रलक्षित या रचनात्मक सूचना से तात्पर्य उस सूचना से है जिसे न्यायालय वाद की परिस्थितियों से किसी व्यक्ति पर इतने सुदृढ़ प्रकल्पना पर थोपे कि उसे खण्डित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती यद्यपि ऐसे औपचारिक रूप से प्रेषित नहीं किया गया था। दूसरे शब्दों में किसी व्यक्ति के बारे में प्रलक्षित सूचना की कल्पना तब की जाती है जब उसके विषय में यह मान लिया जाये कि उसे उन तत्वों की ऐसी वास्तविक सूचना होती जैसा कि एक युक्तिसंगत व्यक्ति करता है। प्रलक्षित या अप्रत्यक्ष सूचना की यह अवधारणा निम्नलिखित कारणों से उत्पन्न होती है।
1. स्वेच्छापूर्ण अवहेलना के कारण सूचना।
2. पूर्ण उपेक्षा के कारण सूचना।
3. अचल सम्पत्ति के किसी संव्यवहार की रजिस्ट्री से प्राप्त सूचना।
4. अचल सम्पत्ति के आधिपत्य द्वारा सूचना।
5. अभिकर्ता को सूचना
प्रलक्षित सूचना को पुनः दो भागों में बांटा जाता है।
- तथ्य की प्रलक्षित सूचना (Constructive Notice of Facts)
- प्रभार और दायित्व की प्रलक्षित सूचना (Contructive notice regarding charge and Liability)
तथ्य की प्रलक्षित सूचना (Constructive Notice of Facts)-
यदि किसी दायित्व या प्रभार (बँतहम) के बारे में पक्षों को वास्तविक सूचना प्राप्त हो जाए तो विधि की प्रकल्पना (presumption) द्वारा यह स्वीकार कर लिया जाता है कि पक्षों को संबंधित संव्यवहार के दस्तावेज, जैसे बन्धक-पत्र तथा किरायानामा आदि में वर्णित सभी तथ्यों का भी पूर्ण ज्ञान है।
2. प्रभार और दायित्व की प्रलक्षित सूचना (Contructive notice regarding charge and Liability)-
यदि यह सिद्ध हो जाये कि किसी पक्ष ने सूचना से बचने हेतु जानबूझकर ऐसा आचरण किया है जिससे दूसरों को वास्तविक सूचना न मिल सके तो ऐसी अवस्थाओं में प्रभार व अन्य दायित्वों का सांकेतिक ज्ञान उस पर भी थोप दिया जाता है। कपटपूर्ण व्यवहार किसी दायित्व से बचने का आधार नहीं बन सकता।
उदाहरणार्थ
1. इस्माइल बनाम काली C.W.N. 13 में क एक रजिस्टर्ड पत्र को लेने से इंकार करता है जिसमें कुछ ऐसी सूचनायें हैं जो क की ऐसी सम्पत्ति के संबंध में है जिसे वह खरीदने का प्रस्ताव किये हुए के लिये माना जायेगा कि उसे उस पत्र के विषय तत्व की अधिसूचना मिल गई है।
2. राजा बनाम कृष्णस्वामी, 1893 16 Mad. 301 में क एक मकान ख से खरीदता है। खरीदने से पहले क को सूचना दी जाती है कि बंटवारे में वह मकान ख के हिस्से में आया है। क बंटवारे के प्रलेख को देखने का लोप करता है जिसमें ग को यह अधिकार दिया गया है कि यदि मकान बेचा जाता है तो उसे ग ही खरीदेगा। यहां बंटवारे के प्रलेख में निहित ग के अधिकार के प्रति प को सूचना प्राप्त करने का अनुमान किया जायेगा क्योंकि उसने सत्य जानने की स्वेच्छापूर्ण अवहेलना की है।
कब प्रतिनिधि पर नोटिस प्रधान पर भी माना जाता है? (When does notice to the agent amount to the principal?)
सम्पत्ति अन्तरण (संशोधन) अधिनियम 1929 धारा 3 अनुसार, किसी व्यक्ति के प्रतिनिधि को प्राप्त वास्तविक सूचना उसके प्रधान के लिये प्रलक्षित सूचना मानी जायेगी। दूसरे शब्दों में, यदि किसी तथ्य के बारे में अभिकर्ता को – वास्तविक सूचना प्राप्त है तो ऐसी अवस्था में कानून यह अनुमान लगा सकता है कि संबंधित सूचना उसके प्रधान को भी प्राप्त है किन्तु ऐसी सूचना के लिए निम्नलिखित शर्तो का पूरा होना आवश्यक है
1. प्रतिनिधिको किसी तथ्य की वास्तविक सूचनाप्रतिनिधि के रूप में ही प्राप्त होनी चाहिये।
2. प्रतिनिधि को किसी तथ्य की वास्तविक सूचना उसके अभिकरण के दौरान ही मिलनी चाहिये।
3. सूचना अभिकरण से संबंधित कार्य के बारे में होनी चाहिये।
4. सूचना अभिकरण संबंधी कार्य के लिये महत्वपूर्ण होनी चाहिये।
सूचना सिद्धांत के लागू होने की सीमा (Extant of the application of the doctrine of notice)-
सूचना के उक्त सिद्धांत को सूचना का साम्यिक सिद्धांत (Equitable Doctrine of Notice) भी कहते हैं। इसका अर्थ यह है कि यदि किसी व्यक्ति को सम्पत्ति के विषय में किसी तीसरे व्यक्ति के पिछले अधिकार की जानकारी या सूचना नहीं है तो वह ऐसे अधिकार से बाध्य नहीं होगा, बशर्ते कि वह सद्भावनापूर्ण कार्य करता है और उसका मूल्य (price) चुकाता है।
यह सिद्धांत अधिनियम की निम्नलिखित धाराओं में लागू होता है
1. धारा 39 के अन्तर्गत यदि किसी तीसरे व्यक्ति को अचल सम्पत्ति के लाभों से भरण-पोषण प्राप्त करने का अधिकार है और ऐसी सम्पत्ति को हस्तान्तरित कर दिया जाता है तो वह अधिकार अन्तरण के खिलाफ है यदि अन्तरिती को उसकी सूचना हो। लेकिन यदि अन्तरिती को ऐसे भार की सूचना न हो तथा उसने प्रतिफल दिया हो तो उसके विरूद्ध इसे लागू नहीं किया जा सकता।
2. धारा 40 कहती है कि दृश्यमान स्वामी (Ostensible Owner) द्वारा किये गये अन्तरण को वास्तविक स्वामी द्वारा चुनौती नहीं दी जा सकती है यदि अन्तरणग्रहीता ने हस्तांतरणकर्ता की हस्तान्तरण करने की सक्षमता के संबंध में जानकारी प्राप्त करने के लिये युक्तिसंगत सावधानी बरतने के बाद सद्भावना से कार्य किया है। लेकिन यदि हस्तान्तरणग्रहीता को वास्तविक स्वामी के हित की सूचना है तो संव्यवहार को चुनौती दी जा सकती है।
उक्त धाराओं के अतिरिक्त यह सिद्धांत सम्पत्ति अधिनियम की धारा 53 A, 100, 106, 108 B, 110, 130 और 131 आदि में लागू होता है।
किन परिस्थितियों में कब्जा सूचना माना जाता ? (Under what circumstances the possession can amount to notice?)
सम्पत्ति अन्तरण (संशोधन) अधिनियम 1929 धारा 3 के अनुसार किसी सम्पत्ति पर वास्तविक कब्जा प्रलक्षित सूचना माना जाता है। धारा 3 के प्रावधानों के अनुसार, जो व्यक्ति किसी अचल सम्पत्ति को या ऐसी सम्पत्ति के किसी अंश या हित को अर्जित करता है, तो उसके बारे में यह समझा जायेगा कि उसे संबंधित संपत्ति में उस व्यक्ति के हक की, जिसका कि उस समय सम्पत्ति पर वास्तविक कब्जा हो, सूचना है। अतः उस व्यक्ति के लिये जो किसी अचल सम्पत्ति को खरीदता है या बन्धक द्वारा प्राप्त करता है, यह आवश्यक है कि वह इस बात की जानकारी प्राप्त कर ले, कि क्या अन्तरित की जाने वाली सम्पत्ति पर अन्तरणकर्ता का वास्तविक कब्जा है या नहीं? यदि वह ऐसी जानकारी प्राप्त किये बिना ही किसी सम्पत्ति को खरीदता है या बन्धक रखता है तो वह उसके परिणामी के प्रति स्वयं ही उत्तर-दायी होगा।
सम्पत्ति अन्तरण (संशोधन) अधिनियम 1929 से पूर्व, वास्तविक कब्जे के नोटिस माने जाने के संबंध में बम्बई, मद्रास तथा इलाहाबाद हाई कोर्ट का यह विचार था कि वास्तविक कब्जे में वर्तमान व्यक्ति के समस्त अधिकारों एवं हितों की प्रलक्षित सूचना उस व्यक्ति को होती है, जो संबंधित सम्पत्ति को अन्तरण के अन्तर्गत प्राप्त करता है। इसके विपरीत कलकत्ता हाई कोर्ट के अनुसार कब्जा सूचना नहीं है बल्कि यह केवल प्रलक्षित सूचना का एक साक्ष्य मात्र है परन्तु सम्पत्ति अन्तरण (संशोधन) अधिनियम, 1929 के पारित होने के बाद कलकत्ता हाई कोर्ट ने भी वास्तविक कब्जे को प्रलक्षित सूचना ही माना है।
वास्तविक कब्जा प्रलक्षित सूचना है (The actual possission is the constructive notice)
वास्तविक कब्जा, सम्पत्ति पर काबिज व्यक्ति के समस्त अधिकारों एवं हितों के बारे में उस व्यक्ति के, जो संबंधित सम्पत्ति को अन्तरण के अन्तर्गत प्राप्त करता है, प्रलक्षित सूचना होती है। सम्पत्ति अन्तरण (संशोधन) अधिनियम 1929 के अनुसार वास्तविक कब्जे से तात्पर्य उस स्थिति से है जिससे संबंधित व्यक्ति सम्पत्ति पर नियन्त्रण रख रहा हो तथा वह संबंधित सम्पत्ति का प्रत्यक्ष रूप में इच्छानुसार प्रयोग करने के लिये स्वतंत्र हो। वास्तविक कब्जा नोटिस है इस सिद्धांत का समर्थन डेनियल बनाम डेविसन 1809 में किया गया। सामान्यतया वास्तविक कब्जा नोटिस माना है। परन्तु निम्नलिखित स्थितियों में वास्तविक कब्जा नोटिस नहीं माना जाता है
1. संविदा पर आधारित मामले-ऐसे मामले के संबंध में जो संविदा पर आधारित हो वास्तविक कब्जा नोटिस नहीं माना जाता है। उदाहरणार्थ-यदि कोई क्रेता किसी सम्पत्ति को खरीदता है तो विक्रेता का यह दायित्व है कि वह सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम, 1882 की धारा 55 (1) (A) के अन्तर्गत सम्पत्ति के स्वामित्व या सम्पत्ति की कमियों की सूचना क्रेता को दे, क्योंकि न तो विक्रेता, क्रेता पर दोषपूर्ण स्वामित्व ही आरोपित कर सकता है और न ही यह कह कर कि क्रेता को स्वामित्व एवं सम्पत्ति की प्रलक्षित सूचना थी, अपने दायित्व से मुक्त हो सकता है।
2. पूरी सम्पत्ति पर कब्जा-यदि विक्रेता का किसी अन्तरित की जाने वाली पूर्ण सम्पत्ति पर कब्जा है तो ऐसा कब्जा, क्रेता के लिये प्रलक्षित सूचना नहीं माना जाता है।
लेख का रजिस्ट्रेशन कब सूचना माना जाता है? Under what Circumstances can registration amount to notice?)
धारा 3 के प्रावधानों के अनुसार, ऐसे मामलों में जहां अचल सम्पत्ति से सम्बन्धी कोई संव्यवहार, रजिस्ट्रीकृत, दस्तावेज (Registered Deed) के द्वारा किया जाता है वहां ऐसे व्यक्ति के बारे में जो ऐसी सम्पत्ति में या उसके किसी भाग में कोई हित अर्जित करता है तो यह माना जायेगा, कि उसे संबंधित विलेख की सूचना उस दिन से प्राप्त हो गयी है, जिस तिथि को संबंधित विलेख का पंजीकरण हुआ था।
एक प्रलेख का रजिस्ट्रेशन केवल तभी नोटिस होगा जबकि उसमें निम्नलिखित तत्व विद्यमान हो
1. रजिस्ट्रेशन केवल रजिस्ट्री की तिथि के पश्चात ही उस सम्पत्ति से संव्यवहार करने वाले व्यक्तियों के लिये नोटिस माना जायेगा-रजिस्ट्रेशन की सूचना होने का पहला तत्व यह है कि रजिस्ट्रेशन, केवल रजिस्ट्री की तिथि के पश्चात ही संबंधित संपत्ति से संव्यवहार करने वाले व्यक्तियों के लिये नोटिस माना जायेगा अर्थात् रजिस्ट्रेशन रजिस्ट्री की तिथि से पूर्व के संव्यवहार के बारे में नोटिस नहीं माना जायेगा।
2. रजिस्ट्रेशन केवल उन्हीं मामलों में सूचना माना में जायेगा, जिनमें दस्तावेज की रजिस्ट्री कानून के अनुसार होनी आवश्यक है-किसी विलेख का पंजीकरण केवल उसी स्थिति में ही सूचना माना जा सकता है, जबकि दस्तावेज की रजिस्ट्री, कानून के प्रावधानों के अनुसार की गयी हो, अर्थात् यदि किसी दस्तावेज की रजिस्ट्री करवानी कानूनन आवश्यक नहीं हो तो ऐसा दस्तावेज पंजीकृत होने के पश्चात् भी प्रलक्षित सूचना नहीं माना जाता है। इस प्रकार रजिस्ट्रेशन को केवल उन्हीं मामलों में सूचना माना जाता है, जिन मामलों में किसी दस्तावेज की कानून के अनुसार रजिस्ट्री की जानी अनिवार्य है।
3. रजिस्ट्रेशन केवल तब ही सूचना माना जायेगा जबकि विलेख का पंजीकरण भारतीय पंजीकरण अधिनियम 1908 में निर्धारित ढंग से हुआ हो-किसी रजिस्ट्रेशन को प्रलक्षित सूचना मानने के लिये आवश्यक है कि सम्पत्ति से संबंधित ऐसी दस्तावेजों की जिनकी रजिस्ट्री होनी आवश्यक है, रजिस्ट्री भारतीय पंजीकरण अधिनियम 1908 की धारा 51 तथा 55 के प्रावधानों के अनुसार होनी चाहिये। यदि किसी दस्तावेज का पंजीयन, भारतीय पंजीकरण अधिनियम 1908 में निर्धारित ढंग से नहीं हुआ हो तो ऐसा रजिस्ट्रेशन सूचना नहीं माना जा सकता है।
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