पंचायती राज क्या है
पंचायती राज व्यवस्था, ग्रामीण भारत की स्थानीय स्वशासन की प्रणाली है। जिस तरह से नगरपालिकाओं तथा उपनगरपालिकाओं के द्वारा शहरी क्षेत्रों का स्वशासन चलता है, उसी प्रकार पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों का स्वशासन चलता है। पंचायती राज संस्थाएँ तीन हैं-
(1) ग्राम के स्तर पर ग्राम पंचायत
(2) ब्लॉक (तालुका) स्तर पर पंचायत समिति
(3) जिला स्तर पर जिला परिषद
इन संस्थाओ का काम आर्थिक विकास करना, सामाजिक न्याय को मजबूत करना तथा राज्य सरकार और केन्द्र सरकार की योजनाओं को लागू करना है, जिसमें ११वीं अनुसूची में उल्लिखित २९ विषय भी हैं
पंचायती राज से संबंधित विभिन्न समितियाँ
- बलवंत राय मेहता समिति (1956-57)
- अशोक मेहता समिति (1977-78)
- जी वी के राव समिति (1985)
- डॉ एल ऍम सिन्घवी समिति (1986)
पंचायती राज की विशेषताएं
1). संविधान के अनुच्छेद 243 बी, भाग 11 के अन्तर्गत ग्राम, प्रखण्ड एवं जिला स्तर पर क्रमशः ग्राम पंचायत, पंचायत समिति तथा जिला परिषद् के गठन की व्यवस्था की गई है।
2). पंचायत के सभी सदस्य ग्रामीण चुनाव – क्षेत्र के वयस्क नागरिकों द्वारा चुने जाते हैं।
3). प्रखण्ड एवं जिला स्तर की पंचायतों में लोक सभा, राज्य सभा, विधान सभा के सदस्यों के प्रतिनिधियों का भी प्रावधान है।
4). प्रत्येक पंचायत में अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए जनसंख्या के अनुपात के अनुसार आरक्षण का प्रावधान है, जिसमें एक – तिहाई आरक्षण उस वर्ग की महिलाओं के लिए है। पंचायत के कुल सदस्यों का एक क – तिहाई भाग महिलाओं के लिए आरक्षित है जिसमें अनुसूचित जाति एवं जनजाति की महिलाएँ भी सम्मिलित हैं। –
5). पंचायत का कार्य काल 5 वर्ष है।
6). पंचायत की शक्तियाँ विधान मण्डल द्वारा निर्धारित की जाती हैं।
7). संविधान संशोधन 73 अधिनियम, 1992 के द्वारा वित्त आयोग के गठन का प्रावधान किया गया है जो पंचायतों की आर्थिक स्थिति की देख भाल करेगा। पंचायतों को संचित निधि से भी अनुदान दिया जा सकता है।
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