शादीशुदा लिव-इन-पार्टनर को कानून से कोई सुरक्षा नहीं दीजा जा सकती | No Protection for Married Couple in Live in Relationship

शादीशुदा लिव-इन-पार्टनर को कानून से कोई सुरक्षा नहीं दीजा जा सकती | No Protection for Married Couple in Live in Relationship

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है

कि जब एक पुरुष और एक महिला, अन्य व्यक्तियों के साथ उनके विवाह के अस्तित्व के दौरान ( कानूनी तौर पर अन्य व्यक्तियों के साथ उनका विवाह खत्म न हुआ हो), एक साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहते हैं तो वे कानून के तहत किसी भी संरक्षण के हकदार नहीं होंगे। एक लिव-इन-कपल की तरफ से रिट याचिका दायर करके स्पष्ट तौर पर कहा गया था कि उनकी शादी अन्य व्यक्तियों के साथ अब भी अस्तित्व में है, परंतु अब वह दोनों एक साथ रह रहे हैं। इस याचिका को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति भारती सप्रू और न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल की खंडपीठ ने कहा कि- ”दोनों याचिकाकर्ताओं के विवाह को कानून के अनुसार समाप्त नहीं किया गया है। अन्य साथी के साथ उनके विवाह के निर्वाह के दौरान, अदालत के लिए ऐसे जोड़े को सुरक्षा प्रदान करना संभव नहीं है, जो वस्तुतः कानून की धज्जियां उड़ा रहे हैं।”

अदालत ने कहा कि विवाह की पवित्रता को संरक्षित करना होगा।

यदि कोई पक्षकार इससे बाहर निकलना चाहता है, तो वह हमेशा वैध तरीके से विवाह विच्छेद करने की मांग कर सकता है। हालांकि, न्यायालय उन लोगों को सहायता नहीं दे सकता है जो कानून का पालन नहीं करना चाहते। 2016 में ”कुसुम व अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य रिट सी नंबर 53503/2016” मामले में हाईकोर्ट की एकल पीठ ने भी इसी तरह अवलोकन किया था।

एक विवाहित महिला और उसके लिव-इन पार्टनर द्वारा संरक्षण की मांग करने वाली याचिका को खारिज करते हुए, न्यायमूर्ति सुनीत कुमार ने कहा था कि- ”याचिका में यह स्वीकार किया जाता है और दलील दी जाती है कि दूसरे याचिकाकर्ता के पहले याचिकाकर्ता के साथ संबंध हैं, जो कि विवाहित है और आज की तारीख में उसकी शादी किसी भी सक्षम अदालत द्वारा खत्म नहीं की गई है, इसलिए इस तरह के संबंध को कोई सुरक्षा नहीं दी जा सकती है।” एकल पीठ ने कहा था कि कानून एक रिश्ते को ”शादी की प्रकृति”के तौर पर मान्यता देता है, न कि एक साधारण लिव-इन रिलेशनशिप को।

मामले का विवरण- केस का शीर्षक- अखलेश व अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य

केस नंबर-रिट सी नंबर 6681/2020 कोरम- न्यायमूर्ति भारती सप्रू और न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल

प्रतिनिधित्व-अधिवक्ता महेंद्र कुमार सिंह चैहान (याचिकाकर्ताओं के लिए)




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