मौलिक अधिकारों से आप क्या समझते हैं यह अधिकार दूसरे अधिकारों से किस तरह अलग है । || What is fundamental rights in India
भारतीय संविधान के भाग 3 में मूल अधिकारों का उल्लेख किया गया है संसार मे शायद ही कोई ऐसा संविधान होगा जिसमें अधिकारों का उल्लेख ना किया गया हो । पर भारत के संविधान में इसकी विवेचना व्यापक रूप से बताई गई है । What is fundamental rights in india
भारतीय संविधान में भी मौलिक अधिकारों की घोषणा इंग्लैंड की पध्दति के अनुसार ही करी गई है । पर उनके मूल अर्थों में कोई विशेष अंतर नहीं है । इसका मतलब मूल अधिकारों के आधारभूत अधिकार है जो नागरिकों के बौद्धिक, नैतिक, आध्यात्मिक विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है । इन अधिकारों के अभाव में व्यक्ति का बहुमुखी विकास संभव नहीं है क्योंकि यह अधिकार प्राकृतिक और आवश्यक है । हर राज्य का यह कर्तव्य है कि वह नागरिकों की स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए इन अधिकारों को मान्यता प्रदान करें और उनके प्रयोग की स्वतंत्रता प्रदान करें ।
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गोरखनाथ के मामले में अभिव्यक्त इस मत की मेनका गांधी के मामले में भी पुष्टि की गई है न्यायधिपति श्री बेग ने कहा है कि मूल अधिकार ऐसे अधिकार है जो खुद में समाविष्ट है ।
भारतीय संविधान के मूल अधिकारों का समावेश कुछ लक्षणों को ध्यान में रखकर ही किया गया है । संविधान के प्रस्तावना में जिन लक्ष्य का निर्धारण किया गया है उनमें बहुतों की पूर्ति मूल अधिकारों की व्याख्या करके ही की गई है । प्रस्तावना में संविधान का लक्ष्य नागरिकों के लिए सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक न्याय की व्यवस्था करना, विचार, धर्म विश्वास और पूजा को स्वतंत्रता प्रदान करना और जीवन स्तर तथा अवसर की समानता प्रदान करना बताया गया है । मूल अधिकारों की व्यवस्था द्वारा इनके प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त किया गया है ।
मूल अधिकार और साधारण अधिकार में अंतर
मूल अधिकारों और विधि के अंतर्गत अधिकारों के बीच निम्नलिखित अंतर है:-
1) मूल अधिकार सविधान द्वारा इस देश के नागरिकों को प्रदान और प्रत्याभूत किए गए हैं । जहां तक संविधान द्वारा ऐसी अनुमति प्रदान की गई हो या शिवाय संविधान के संशोधन के इनमें कांट छांट नहीं की जा सकती है और ना ही इन्हें छीना जा सकता है । जबकि साधारण अधिकार देश की साधारण विधि के अंतर्गत नागरिकों को प्रदान किए जाते हैं । और इसमे समय के अनुसार साधारण कानून के अंतर्गत संशोधन किए जा सकते हैं और उन्हें रद्द भी किया जा सकता है ।
2) अनुच्छेद 32 और 226 किसी मूल अधिकार के अति उल्लंघन पर सीधे उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय पहुंचने के लिए उप बंद करते हैं । जबकि यदि किसी साधारण अधिकार का उल्लंघन हुआ है तो ऐसे उल्लंघन के खिलाफ उपचार साधारण कानून के अंतर्गत साधारण कोर्ट में प्राप्त किया जा सकता है ।
3) हमारे संविधान के अंतर्गत मूल अधिकारों का त्याग नहीं हो सकता जबकि साधारण अधिकार का धारक अपने अधिकार का त्याग यानी कि waive कर सकता है ।
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मूल अधिकारों का संशोधन
गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य के मुकदमे में स्थिति यह थी, संसद अनुच्छेद 368 के उपबंधो के अंतर्गत संविधान में संशोधन करके मूल अधिकारों में परिवर्तन या कमी कर सकती थी । शंकर प्रसाद बनाम भारत संघ तथा सज्जन सिंह बनाम राजस्थान राज्य के मामले में न्यायालय के द्वारा यह निर्धारित किया गया के अनुच्छेद 368 के अंतर्गत पारित संवैधानिक संशोधन द्वारा मूल अधिकारों में परिवर्तन किया जा सकता है और ऐसा कानून अनुच्छेद 13 में प्रयोग की गई कानून शब्द के अंतर्गत नहीं आता ।
गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य के केस में सुप्रीम कोर्ट ने शंकरी प्रसाद बनाम भारत संघ, सज्जन सिंह बनाम राजस्थान में दिए गए फैसलो को उलट दिया और निर्धारित किया है कि संविधान के अनुच्छेद 368 में निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार संविधान में संशोधन करने के लिए पारित कानून के द्वारा मूल अधिकारों में कोई कमी नहीं की जा सकती । अनुच्छेद 368 में तो केवल संविधान के संशोधन संबंधी प्रक्रिया का वर्णन है वह संसद को मूल अधिकारों में संशोधन करने की शक्ति नहीं प्रदान करता है ।
संविधान के 24 वें संशोधन अधिनियम 1971 गोरख नाथ के निर्णय के प्रभाव को समाप्त कर दिया है । इस संशोधन का उद्देश्य संसद की मूल अधिकारों में संशोधन करने की शक्ति को दोबारा स्थापित करना है । केशवानंद भारती बनाम भारत संघ के केस में सुप्रीम कोर्ट ने 24 वे संशोधन अधिनियम को विधि मान्य घोषित कर दिया है । What is fundamental rights in india
केशवानंद भारती के प्रकरण में उत्पन्न हुए कठिनाइयों को दूर करने के लिए 1976 में 42वां संविधान संशोधन अधिनियम पारित किया गया । इसी संशोधन अधिनियम द्वारा अनुच्छेद 368 में एक नया खंड जोड़कर यह स्पष्ट कर दिया गया है कि संसद की संविधान की संशोधन शक्ति सर्वोच्च है । और उस पर किसी भी प्रकार की कोई परिसीमन नहीं लगाई जा सकती है ।
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